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लेश्या-कोश महायुग्म द्वीन्द्रिय शतक की तरह महायुग्म चतुरिन्द्रिय के भी बारह शतक कहने लेकिन अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट चारगाउ (क्रोश) प्रमाण की ; स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट छः मास की कहनी। शेष पद सर्व द्वीन्द्रिय की तरह कहने। ८६.५ सलेशी महायुग्म असंजी पंचेन्द्रिय जीव :
कडजुम्मकडजुम्मअसन्निपंचिंदिया णं भंते ! कओ उववज्जन्ति ? जहा बेईदियाणं तहेव असन्निसु वि बारस सया कायव्वा । नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहुत्तं । ठिई जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, सेसं जहा बेईदियाणं ।
-भग० श ३६ । पृ० ६३१ कृतयुग्म-कृतयुग्म द्वीन्द्रिय की तरह कृतयुग्म-कृतयुग्म असंशी पंचेन्द्रिय के भी बारह शतक कहने। लेकिन अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट एक हजार योजन की ; काय स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट प्रत्येक पूर्व क्रोड की तथा आयुस्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट पूर्व क्रोड की होती है। बाकी पद सर्व द्वीन्द्रिय शतक की तरह कहना। ८६६ सलेशी महायुग्म संशी पंचेन्द्रिय जीव :--
कडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते! xxx ( कइ लेस्साओ पत्नत्ताओ ) ? कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। x x x एवं सोलससु वि जुम्मसु भाणियव्वं । .. पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! xxx (कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ)? कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा वा। xxx एवं सोलससु वि जम्मेसु। एवं एत्थ वि एकारस उद्देसगा तहेव ।
-भग० श ४० । श १ । प्र २, ५, ६ । पृ० ६३१,६३२ कृतयुग्म-कृतयुग्म संशी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह महायुग्मों में ही कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्याएं होती हैं। प्रथमसमय कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह महायुग्मों में ही कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्याएं होती हैं। इसी प्रकार प्रथमसमय यावत् चरमअचरम समय उद्देशक तक छः लेश्याएं होती हैं ऐसा कहना ।
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