Book Title: Leshya kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan
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लेश्या-कोश भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! कओ उववज्जति० ? जहा पढमं सन्निसयं तहा नेयव्वं भवसिद्धियाभिलावेणं ।
-भग० श ४० । श ८। पृ० ६३३ भवसिद्धिक महायुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह ही महायुग्मों में कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्याएं होती हैं ( देखो श ४० । श १)।
अभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! xxx (कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ) ? कण्हलेस्सा वा सुक्कलेस्सा वा | xxx एवं सोलससु वि जुम्मेसु ।
-भग० श ४० । श १५ । पृ० ६३३-६३४ अभवसिद्धिक महायुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह ही महायुग्मों में कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्याएं होती हैं।
कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जति ? तहेव जहा पढमुद्दसओ सन्नीणं । नवरं बन्धो-बेओ-उदई-उदीरणा-लेस्सा-बन्धन-सन्ना कसाय-वेदबंधगा य एयाणि जहा बेइ दियाणं। कण्हलेस्साणं वेदो तिविहो, अवेदगा नत्थि । संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई । एवं ठिईए वि । नवरं ठिईए अंतोमुहत्तमब्भहियाइ न भन्नति । सेसं जहा एएसिं चेव पढमे उद्दसए जाव अणंतखुत्तो । एवं सोलससु वि जुम्मेसु।
पढमसमयकण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! कओ उवव. ज्जंति०? जहा सन्निपंचिंदियपढमसमयउद्दसए तहेव निरवसेसं । नवरं ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा ? हंता कण्हलेस्सा । सेसं तं चेव । एवं सोलससु वि जुम्मेसु xxx एवं एए वि एकारस (वि ) उद्दसगा कण्हलेस्ससए । पढम-तइय-पंचमा सरिसगमा, सेसा अट्ट वि एक( सरिस )गमा।
एवं नीललेस्सेसु वि सयं । नवरं संचिट्ठणा जहन्ने णं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाई । एवं ठिईए वि। एवं तिसु उद्दसएसु।
एवं काऊलेस्ससयं वि। नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमभहियाई। एवं ठिईए वि । एवं तिसु वि उद्दसएसु, सेसं तं चेव।
एवं तेऊलेस्सेसु वि सयं। नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइ। एवं ठिईए वि। नवरं नोसन्नोवउत्ता वा । एवं तिसु वि उद्दसएसु, सेसं तं चेव ।
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