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लेश्या-कोश
२१५ चार घटाते-घटाते चार बाकी रहे वह कृतयुग्म कृतयुग्म कहलाता है क्योंकि घटानेवाले द्रव्य तथा समय की अपेक्षा दोनों रीति से कृतयुग्म रूप हैं। सोलह की संख्या जघन्य कृतयुग्मकृतयुग्म राशि रूप है। उसमें से प्रति समय चार घटाते-घटाते शेष में चार बचते हैं तथा घटाने के समय भी चार होते हैं अथवा उन्नीस की संख्या में प्रति समय चार घटाते-घटाते शेष में तीन शेष रहते हैं तथा घटाने के समय चार लगते हैं। अतः १६ की संख्या जघन्य कृतयुग्म व्योज कहलाती है। इसी प्रकार अन्य भेद जान लेने चाहिये । ]
यहाँ पर महायुग्म राशि एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय जीवों का निम्नलिखित ३३ पदों से विवेचन किया गया है तथा विस्तृत विवेचन कृययुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय के पद में है, अवशेष महायुग्म पदों में इसकी भुलावण है तथा जहाँ भिन्नता है वहाँ भिन्नता बतलाई गई है। स्थान-स्थान पर उत्पल उद्देशक ( भग० श ११ । उ १ ) की भुलावण है ।
(१) कहाँ से उपपात, (२) उपपात संख्या, (३) जीवों की संख्या, (४) अवगाहना, (५) बंधक-अबन्धक, (६) वेदक-अवेदक, (७) उदय-अनुदय, (८) उदीरक-अनुदीरक (६) लेश्या, (१०) दृष्टि, (११) ज्ञानी-अज्ञानी, (१२) योगी, (१३) उपयोगी, (१४) शरीर के वर्ण-गंध-रस-स्पशी, आत्मा की अपेक्षा अवर्णी आदि, (१५) श्वासोच्छ्वासक, (१६) आहारक अनाहारक, (१७) विरत-अविरत, (१८) सक्रिय-अक्रिय, (१६) कर्मसंख्याबंधक, (२०) संज्ञोपयोगी, (२१) कषायी, (२२) वेदक ( लिंग ), (२३) वेदबन्धक, (२४) संज्ञी असंज्ञी, (२५) इन्द्रिय-अनिन्द्रिय, (२६) अनुबन्धकाल, (२७) आहार, (२८) संवेध, (२९) स्थिति, (३०) समुद्घात, (३१) समवहत, (३२) उद्वर्तन, (३३) अनन्तखुत्तो।
सोलह महायुग्मों में प्रत्येक महायुग्म के जीवों के सम्बन्ध में ११ अपेक्षाओं से ११ उद्देशक कहे गये हैं। प्रत्येक उद्देशक में उपयुक्त ३३ पदों का विवेचन है। ११ अपेक्षाएं इस प्रकार हैं
(१) औधिक रूप से, (२) प्रथम समय के, (३) अप्रथम समय के, (४) चरम समय के, (५) अचरम समय के, (६) प्रथम-प्रथम समय के, (७) प्रथम-अप्रथम समय के, (6) प्रथम-चरम समय के, (६) प्रथम-अचरम समय के, (१०) चरम-चरम समय के तथा (११) चरम अचरम समय के।
भवसिद्धिक तथा अभवसिद्धिक जीवों का उपर्यक्त सोलह महायुग्मों से तथा ग्यारह अपेक्षाओं से विवेचन किया गया है। हमने यहाँ पर लेश्या विशेषण सहित पाठों का ही संकलन किया है।
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