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लेश्या-कोश
२०५ सलेशी पृथ्वीकायिक जो अक्रियावादी तथा अज्ञानवादी होते हैं वे तिर्यंचायु तथा मनुष्यायु बाँधते हैं ; नरकायु तथा देवायु नहीं बाँधते हैं। कृष्ण-नील-कापोतलेशी पृथ्वीकायिकों के सम्बन्ध में ऐसा ही कहना। तेजोलेशी पृथ्वीकायिक किसी भी आयु का बंधन नहीं करते हैं। पृथ्वीकायिक जीवों की तरह अप्कायिक तथा वनस्पतिकायिक जीवों के सम्बन्ध में जानना।
सलेशी अग्निकायिक तथा वायुकायिक जीव अक्रियावादी तथा अज्ञानवादी ही होते हैं तथा सर्व स्थानों में केवल तिर्यंचायु बाँधते हैं।।
__ पृथ्वीकायिक जीवों की तरह द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में जानना।
क्रियावादी सलेशी तिर्यंच पंचेंद्रिय जीव मनःपर्यव ज्ञानी की तरह केवल देवायु बाँधते हैं तथा देवायु में भी केवल वैमानिक देवों की आयु बाँधते हैं। अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी सलेशी पंचेंद्रिय तिर्यंच चारों ही प्रकार की आयु बाँधते हैं। कृष्णलेशी क्रियावादी पंचेंद्रिय तिर्यंच कोई भी आयु नहीं बाँधते हैं। अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी कृष्णलेशी पंचेंद्रिय तिर्यंच चारों ही प्रकार की आयु बाँधते हैं। जैसा कृष्णलेशी पंचेंद्रिय तिर्यच के सम्बन्ध में कहा, वैसा ही नीललेशी तथा कापोतलेशी तिर्यच पंचेंद्रिय के सम्बन्ध में जानना । क्रियावादी तेजोलेशी तिर्यंच पंचेंद्रिय क्रियावादी सलेशी तिर्यंच पंचेंद्रिय की तरह केवल वैमानिक देवों की आयु बाँधते हैं। अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी तेजोलेशी तिर्यंच पंचेंद्रिय नरकायु नहीं बाँधते हैं, परन्तु तिर्यंचायु, मनुष्यायु, देवायु बाँधते हैं। पद्मलेशी तथा शुक्ललेशी पंचेंद्रिय तिर्यंच के सम्बंध में जैसा तेजोलेशी तिर्यंच पंचेंद्रिय के सम्बन्ध में कहा, वैसा ही कहना।
जिस प्रकार सलेशी यावत् शुक्ललेशी पंचेंद्रिय तिर्यंच के सम्बन्ध में कहा गया है वैसा ही सलेशी यावत् शुक्ललेशी मनुष्य के सम्बन्ध में भी कहना । अलेशी मनुष्य किसी भी प्रकार की आयु नहीं बाँधते हैं। ___ वाणव्यंतर-ज्योतिषी वैमानिक देवों के सम्बन्ध में वैसा ही कहना जैसा असुरकुमार देवों के सम्बन्ध में कहा गया है। जिसमें जितनी लेश्या हो उतनी लेश्या का विवेचन करना। '८२.३ सलेशी जीव और मतवाद की अपेक्षा से भवसिद्धिकता-अभवसिद्धिकता :
सलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावाई किं भवसिद्धिया पुच्छा ? गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया। सलेस्सा णं भंते ! जीवा अकिरियावाई किं भवसिद्धिया पुच्छा ? गोयमा ! भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि । एवं अन्नाणियबाई
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