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लेश्या-कोश अणागारोवउत्ता वि । एवं जाव चउरिदियाणं। सव्वट्ठाणेसु एयाइं चेव मज्झिल्लगाइं दो समोसरणाई xxx पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा जीवा। नवरं जं अस्थि तं भाणियव्वं । मणुस्सा जहा जीवा तहेव निरवसेसं । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा।
-भग० श ३० । उ १ । प्र ३, ४, ८, ६ । पृ० ६०५-६०६ दर्शन की अपेक्षा से जीव, समास में, चार मतवादों में विभक्त हैं, यथा- क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी। इन मतवादों के सम्बन्ध में विशेष जानकारी हेतु आया० श्रु १ । अ १ । उ १ । सू ३ की टीका देखें।
सलेशी जीव क्रियावादी भी, अक्रियावादी भी, अज्ञानवादी भी तथा विनयवादी भी होते हैं। कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी जीव चारों मतवादवाले होते हैं। अलेशी जीव केवल क्रियावादी होते हैं।
सलेशी नारकी भी चारों मतवादवाले होते हैं। कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी नारकी भी चारों मतवादवाले होते हैं। सलेशी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार चारों मतवादवाले होते हैं।
सलेशी पृथ्वीकायिक जीव अक्रियावादी तधा अज्ञानवादी होते हैं। इसी प्रकार यावत् सलेशी चतुरिन्द्रिय जीव अक्रियावादी तथा अज्ञानवादी होते हैं।
सलेशी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिवाले जीव चारों मतवादवाले होते हैं। सलेशी मनुष्य भी चारों मतवाद वाले हैं। अलेशी मनुष्य केवल क्रियावादी होते हैं। सलेशी वानव्यंतर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देव भी चारों मतबादवाले होते हैं।
जिसके जितनी लेश्याए हों उतने विवेचन करने। '८२.२ सलेशी जीव के मतवाद ( दर्शन ) की अपेक्षा आयु का बंध :
किरियावाइ णं भते ! जीवा किं नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरंति, मणुस्साउयं पकरेंति, देवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं वि पकरेंति, देवाउयं वि पकरेंति ।
जइ देवाउयं पकरेंति किं भवणवासिदेवाउयं पकरेंति, जाव वेमाणियदेवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! नो भवणवासीदेवाउयं पकरेंति, नो वाणमंतरदेवाउयं पकरेंति, नो जोइसियदेवाउयं पकरेंति, वेमाणियदेवाउयं पकरेंति । अकिरियावाई णं भते! जीवा किं नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्ख० पुच्छा ? गोयमा ! नेरइयाउयं वि पकरेंति, जाव देवाउयं वि पकरेंति । एवं अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि ।
सलेस्सां गंभंते ! जीवा किरियावाई कि नेरइयाउयं पकरेंति० पुच्छा ? गोयमा ! नो नेरइयाउयं० एवं जहेव जीवा तहेव सलेस्सा वि चउहि वि समोसरणेहिं भाणियव्वा ।
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