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लेश्या - कोश
- ७६ सलेशी जीव और कर्म का समर्जन समाचरणः
जीवाणं भंते! पावं कम्मं कहिं समज्जिणिसु, कहिं समायरिंसु ? गोयमा ! सविता तिरिक्खजोगिएसु होज्जा (१), अहवा तिरिक्खजोणिएस य नेरइएस होना (२), अहवा तिरिक्खजोणिएस य मणुस्सेसु य होना (३), अहवा तिरिक्खजोगिएसु य देवेसु य होज्जा (४), अहवा तिरिक्खजोगिएसु य नेरइएस य मणुस्से होज्जा (५), अहवा तिरिक्खजोगिएसु य नेरइएस य देवेसु होज्जा (६), अहवा तिरिक्खजोणिसु य मणुस्सेसु य देवेसु य होज्जा (७) अहवा तिरिक्खजोणिएस य नेर य मणुस्से य देवेसु य होज्जा (८) ।
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सलेस्सा णं भंते! जीवा पार्व कम्मं कहिं समज्जिणिसु, कहिं समायरिंसु ? एवं चैव । एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा | xxx नेरइयाणं भंते! पावं कम्म कहि समज्जिणिसु, कहिं समायरिंसु ? गोयमा ! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएस होज्ज त्तिएवं वेव अट्ठ भंगा भाणियव्वा । एवं सव्वत्थ अट्ठ भंगा, एवं जाव अणागारोतव । एवं जाव वेमाणियाणं । एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ, एवं जाव अंतरायणं । एवं एए जीवादीया वैमाणियपज्जवसाणा नव दंडगा भवंति ।
-भग० श २८ । उ १ । पृ० ६०३
जीवों ने किस गति में पापकर्म का समर्जन किया--उपार्जन किया तथा किस गति में पापकर्म का समाचरण किया— पापकर्म की हेतुभूत पापक्रिया का आचरण किया । (१) वे सर्व जीव तिर्य चयोनि में थे, (२) अथवा तिर्य चयोनि में तथा नारकियों में थे, (३) अथवा तिर्यच योनि में तथा मनुष्यों में थे (४) अथवा तिर्यच योनि में तथा देवों में थे, (५) अथवा तिर्यंच योनि में, नारकियों तथा मनुष्यों में थे, (६) अथवा तिर्यंच योनि में, नारकियां तथा देवों में थे, (७) अथवा तिर्यच योनि में, मनुष्यों तथा देवों में थे, (८) अथवा तिर्यच योनि में, नारकियों, मनुष्यों तथा देवों में । इन आठ अवस्थाओं में जीवों ने पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण किया था ।
मलेशी जीवों ने पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण उपर्युक्त आठ विकल्पों में किया था । इसी प्रकार कृष्णलेशी यावत्, अलेशी शुक्ललेशी जीवों ने पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। सलेशी नारकी जीवों ने भी पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था । इसी प्रकार यावत् वैमानिक देवों तक जानना । मलेशी यावत् अलेशी जीवों ने ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय - - अष्ट कर्मों का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। इसी प्रकार नारकी यावत् वैमानिक जीवों ने
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