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लेश्या - कोश
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सलेशी अचरम नारकी आयुकर्म का बन्धन प्रथम और तृतीय भंग से करता इसी प्रकार यावत् सलेशी अचरम स्तनितकुमार तक दण्डक के जीव प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करते हैं । अचरम तेजोलेशी पृथ्वीकायिक, अपकायिक व वनस्पतिकायिक जीव केवल तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है । कृष्णलेशी, नीललेशी व कापीतलेशी अचरम पृथ्वीकायिक, अपकायिक व वनस्पतिकायिक जीव प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है। सलेशी अचरम अग्निकायिक व वायुकायिक जीव प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है । इसी प्रकार मलेशी अचरम द्वीन्द्रिय, चीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है। सलेशी अचरम तिर्यच पंचेन्द्रिय प्रथम और तृतीय भंग से; सलेशी अचरम मनुष्य भी प्रथम और तृतीय भंग से, सलेशी अचरम वानव्यंतर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देव नारकी की तरह प्रथम और तृतीयभंग से आयुकर्म का बन्धन करता है ।
नाम, गोत्र, अन्तराय सम्बन्धी पद ज्ञानावरणीय कर्म की वक्तव्यता की तरह
जानना ।
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अचरम विशेषण से अलेशी की पृच्छा नहीं करनी ।
७५ सलेशी जीव और कर्म का करना ।
जीवे ( जीवा ) णं भंते! पावं कम्मं किं करिंसु करेन्ति करिस्संति ( १ ), करिंसु करेंति न करिस्संति (२) करिंसु न करेंति करिस्संति (३), करिंसु न करेंति न करिस्संति (४) ? गोयमा ! अत्थेगइए करिंसु करेंति करिस्संति ( १ ), अत्थेगइए करिं करेति न करिस्संति ( २), अत्थेगइए करिंसु न करेंति करिस्संति (३), अत्थेगइए करिंसु न करेंति न करिस्संति (४) । सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं एवं एएणं अभिलावेण बंधिसए वत्तव्या सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा, तहेव नवदंडगसंगहिया एक्कारस जच्चेव उद्देस्सगा भाणियव्वा ।
-भग० श २७ । उ १ । प्र १-२ | पृ० ६०३ पापकर्म का करना चार विकल्प से होता है- (१) किया है, करता है, करेगा, (२) किया है, करता है, न करेगा, (३) किया है, नहीं करता है, करेगा, (४) किया है, नहीं करता है और न करेगा ।
मलेशी जीव ने पापकर्म तथा अष्टकर्म किया है इत्यादि उसी प्रकार कहने जैसे बंधन शतक में ( देखो '७४ ) नवदंडक सहित एकादश उद्देशक कहे गए हैं।
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