________________
लेश्या-कोश
१८६ पढम-बिइया भंगा, सेसा अट्ठारस चरिमविहूणा, सेसं तहेव जाव वेमाणियाणं । दरिसणावरणिज्जं वि एवं चेव निरवसेसं। वेयणिज्जे सव्वत्थ वि पढम-बिइया भंगा जाव वेमाणियाणं, नवरं मणुस्सेसु अलेस्से, केवली अजोगी य नत्थि। अचरिमेणं भन्ते ! नेरइए मोहणिज्ज कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! जहेव पावं तहेव निरवसेसं जाव वेमाणिए।
___ अचरिमे णं भंते । नेरइए आउयं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! पढमबिझ्या (तइया) भंगा। एवं सव्वपदेसु वि । नेरइया वि पढम-तइया भंगा, नवरं सम्मामिच्छत्ते तइओभगो, एवं जाव थणियकुमाराणं । पुढविकाइय-आउकाइयवणम्सइकाइयाणं तेऊलेस्साए तइओ भगो, सेसेसु पदेसु सव्वत्थ पढम तझ्या भंगा, तेऊकाइय-वाउकाइयाणं सव्वत्थ पढम-तइया भंगा ? बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं एवं चेव, नवरं सम्मत्ते ओहिनाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे एएसु चउसु वि ठाणेसु तइओ भंगो। पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मामिच्छत्ते तइओ भंगो, सेसेसु पदेसु सव्वत्थ पढम तझ्या भंगा। मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेदए अकसाइम्मि य तइओ भगो। अलेस्स-केवलनाण-अजोगी य न पुच्छिज्जंति । सेसपदेसु सव्वत्थ पढम-तइया भंगा; वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया। नामं गोयं अंतराइयं च जहेव नाणावरणिज्जं तहेव निरवसेसं ।
-भग० श २६ । उ ११ । प्र १-६ । पृ०६०२-६०३ सलेशी अचरम नारकी से दण्डक में सलेशी अचरम तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों तक के जीव पापकर्म का बंधन प्रथम और द्वितीय भंग से करते हैं ।
सलेशी अचरम मनुष्य प्रथम तीन भंगों से पापकर्म का बन्धन करता है। अलेशी मनुष्य के सम्बन्ध में अचरमता का प्रश्न नहीं करना। क्योंकि अचरम अलेशी नहीं होता है। सलेशी अचरम वानव्यंतर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देव सलेशी अचरम नारकी की तरह प्रथम और दूसरे भंग से पापकर्म का बन्धन करते हैं।
सलेशी अचरम नारकी ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धन प्रथम और द्वितीय भंग से करता है, मनुष्य को छोड़कर यावत् वैमानिक देवों तक इसी प्रकार जानना। सलेशी अचरम मनुष्य ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धन प्रथम तीन भंग से करता है। ज्ञानावरणीय कर्म की तरह दर्शनावरणीय कर्म का वर्णन करना। वेदनीय कर्म के बन्धन में सब दण्डकों में प्रथम और द्वितीय भंग से बन्धन होता है लेकिन मनुष्य में अलेशी का प्रश्न नहीं करना।
सलेशी अचरम नारकी मोहनीय कर्म का बन्धन प्रथम और द्वितीय भंग से करता है बाकी सलेशी अचरम दण्डक में जैसा पापकर्म के बन्धन के सम्बन्ध में कहा, वैसा ही निरवशेष कहना।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org