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लेश्या - कोश
सशी जीव सम्बन्धी वक्तव्य सर्व औधिक जीवों की तरह कहना । इसी प्रकार सलेशी नारकीयात् वैमानिक देवों तक कहना । अलग-अलग लेश्या से, जिसके जितनी लेश्या हो, उतने पद कहने । पापकर्म के दंडक की तरह आठ कर्मप्रकृतियों के आठ दंडक औधिक जीव यावत् वैमानिक देव तक कहने ।
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अनंतरोववन्नगाणं भंते! नेरइया पावं कम्मं किं समायं पट्टविसु समायं निट्ठविसु० पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइया समायं पट्टविसु समायं निट्टर्विसु, अत्थेगइया समायं पर्वसु विसमायं निट्टविसु । से केणट्टणं भंते ! एवं वुञ्चइ- अत्थेागइया समायं पट्टर्विसु० तं चेव ? गोयमा ! अनंतरोववन्नगा नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा अत्थेगइया समाज्या समोववन्नगा, अत्थेगझ्या समाज्या विसमोववन्नगा, तत्थ णं जे ते समाज्या समोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्टर्विसु समायं निट्टविंसु । तत्थ
जे ते समाया विसमोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्टविसु विसमायं निट्टविंसु । से तेण णं तं चैव । सलेस्सा णं भंते! अनंतरोववन्नगा नेरख्या पावं० ? एवं चेव, एवं जाव अनागारोवउत्ता । एवं असुरकुमाराणं । एवं जाव वेमाणिया ( णं ). नवरं जं जश्स अत्थि तं तरस भाणियव्वं । एवं नाणावर णिज्जेण वि दण्डओ, एवं निरवसेसं जाव अंतराइएणं ।
एवं एएणं गमएणं जच्चेव बन्धिसए उद्दे सगपरिवाड़ी सच्चेव इह वि भाणियव्वा जाव अचरिमो त्ति । अनंतरउद्दे सगाणं चउण्ह वि एक्का वत्तव्वया, सेसाणं सत्तण्हं एक्का ।
- भग० श २६ । उ २ से ३ । पृ० ६०४-५
सशी अनंतरोपपन्नक नारकी दो प्रकार के होते हैं; यथा कितने ही समायु समोपपन्नक तथा कितने ही समायु विषमोपपन्नक होते हैं । उनमें जो समायु समोपपन्नक हैं वे पापकर्म का प्रारम्भ समकाल में करते हैं तथा अंत भी समकाल में करते हैं । तथा उनमें जो समायुविषमोपपन्नक हैं वे पापकर्म का प्रारम्भ समकाल में करते हैं तथा अन्त विषमकाल में करते हैं। इसी प्रकार असुरकुमार यावत् वैमानिक देवों तक कहना, जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने। इसी प्रकार आठ कर्मप्रकृति के आठ दण्डक कहने ।
• इस प्रकार के पाठों द्वारा जैसी बंधन शतक में उद्देशकों की परिपाटी कही, वैसी ही उद्देशकों की परिपाटी यहाँ भी यावत् अचरम उद्देशक तक कहनी । अनंतर सम्बन्धी चार उद्देशकों की एक जैसी वक्तव्यता कहनी। बाकी के सात उद्देशकों की एक जैसी वक्तव्यता
कहनी ।
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