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लेश्या - कोश
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दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात शुक्ललेशी अनुत्तर विमानावासी देव च्यवन ( ग० २ ) को प्राप्त होते हैं ; तथा असंख्यात शुक्ललेशी अनुत्तर विमानावासी देव अवस्थित ( ग० ३ ) रहते हैं ।
सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमान जो संख्यात विस्तार वाला है उसमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात शुक्ललेशी अनुत्तर विमानावासी देव उत्पन्न ( ग० ) होते हैं ; जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात शुक्ल लेशी अनुत्तर विमानावासी देव च्यवन ( ग० २ ) को प्राप्त होते हैं; तथा संख्यात शुक्ललेशी अनुत्तर विमानावासी देव अवस्थित ( ग० ३ ) रहते हैं ।
अनुत्तर विमान का सर्वार्थसिद्ध विमान एक लाख योजन विस्तार वाला है तथा बाकी चार अनुत्तर विमान असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं। देखो - जीवा० प्रति ३ । उ २ | सू २१३ | ० २३७ तथा ठाण० स्था ४ | उ ३ । सू ३२६ | पृ० २४६ ।
६६ सलेशी जीव और ज्ञान :
'६६' १ सलेशी जीव में कितने ज्ञान अज्ञान :
(क) सलेस्सा णं भंते! जीवा किं नाणी० ? जहा सकाइया ( सकाइया णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी ? गोयमा ! पंच नाणाणि तिन्नि अन्नाणाई भयणाए -- प्र० ३८ ) । कण्हलेस्सा णं भंते! जहा सइंदिया एवं जाव पम्हलेस्सा ( सइ दिया
भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी ? गोयमा ! चत्तारि नाणाइ तिन्नि अन्नाणाइ भयणाए - प्र० ३५ ) । सुक्कलेस्सा जहा सलेस्सा । अलेस्सा जहा सिद्धा ( सिद्धा णं भंते! पुच्छा, गोयमा ! नाणी नो अन्नाणी, नियमा एगनाणी केवलनाणी - प्र०३०) ।
-भग० श ८। उ २ । प्र ६६-६७ | पृ० ५४५ कृष्णलेशी यावत्
सशी जीव में पाँच ज्ञान तथा तीन अज्ञान की भजना होती है । पद्मलेशी जीव में चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान की भजना होती है। शुक्ललेशी जीव में पाँच ज्ञान तथा तीन अज्ञान की भजना होती है । अलेशी जीव में नियम से एक केवलज्ञान होता है ।
(ख) कण्हलेसे णं भंते! जीवे कइसु नाणेसु होज्जा ? गोयमा ! दोसु वा तिसु वा चउसु वा नाणेसु होज्जा, दोसु होमाणे आभिणिबोहियसुयनाणे होज्जा, तिसु होमाणे आभिणिबोहियसुयनाणओहिनाणेसु होज्जा, अहवा तिसु होमाणे आभिणिबोहियसुयनाणमणपज्जवनाणेसु होज्जा, चउसु होमाणे आभिणिबोहियसुयओहिमणपज्जवनाणेसु होज्जा, एवं जाव पम्हलेसे । सुक्कलेसे णं भते ! जीवे कइसु नाणेसु होज्जा ?
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