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लेश्या-कोश
१८५ कर्म का बन्धन करता है। तेजोलेशी पृथ्वीकायिक जीव तृतीय विकल्प से आयुकर्म का बन्धन करता है। सलेशी अपकायिक यावत् वनस्पतिकाय की वक्तव्यता पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता की तरह जाननी । सर्व पदों में अनिकायिक तथा वायुकायिक जीव कोई प्रथम व कोई तृतीय विकल्प से आयुकर्म का बंधन करता है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय जीव सर्व लेश्या-पदों में इसी प्रकार कोई प्रथम व कोई तृतीय विकल्प से आयुकर्म का बन्धन करता है। पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव सर्व लेश्यापदों में चार विकल्पों से आयुकर्म का बन्धन करता है। मनुष्य के सम्बन्ध में लेश्यापदों में औधिक जीव की तरह वक्तव्यता कहनी । वानव्यंतर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देव के सम्बन्ध में भी असुरकुमार की तरह वक्तव्यता कहनी। '७४ १.७ सलेशी औधिक जीव-दंडक और नामकर्म का बन्धन :नाम गोयं अंतरायं च एयाणि जहा नाणावरणिज्ज ।
-भग० श २६ । उ १। प्र २५ । पृ०६०१ ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धन की वक्तव्यता की तरह नामकर्म-बन्धन की वक्तव्यता कहनी। '७४.१८ सलेशी औधिक जीव-दंडक और गोत्रकर्म का बन्धन :___ ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धन की वक्तव्यता की तरह गोत्रकर्म-बन्धन की वक्तव्यता कहनी। (देखो पाठ '७४.१७) •७४.१.६ सलेशी औधिक जीव-दंडक और अंतरायकर्म का बन्धन :
ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धन की वक्तव्यता की तरह अंतरायकर्म-बन्धन को वक्तव्यता कहनी ( देखो पाठ -७४.१७)। '७४.२ सलेशी अनंतरोपपन्न जीव और कर्मबन्धन :____सलेस्से णं भंते ! अणंतरोववन्नए नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! पढम-बिइया भंगा । एवं खलु सव्वस्थ पढम-बिइया भंगा, नवरं सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य न पुच्छिज्जइ। एवं जाव-थणियकुमाराणं। बेइंदियतेइंदिय-चउरिदियाणं वइजोगो न भन्नइ। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वि सम्मामिच्छत्तं, ओहिनाणं, विभंगनाणं, मगजोगो, वइजोगो-एयाणि पंच पयाणि णं भन्नति । मणुस्साणं अलेस्स-सम्मामिच्छत्त-मणपज्जवनाण-केवलनाण-विभंगनाणनोसन्नोवउत्त-अवेयग-अकसायी-मणजोग-वयजोग-अजोगी-एयाणि एक्कारस पदाणि ण भन्नंति। वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं तहेव ते तिन्नि न भन्नंति । सवेसि जाणि सेसाणि ठाणाणि सव्वत्थ पढम-बिया भंगा। एगिदियाणं सव्वत्थ पढम-बिइया भंगा।
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