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लेश्या - कोश
१८३
य सकसाई, जाव लोभकसाइंमि य पढमबिइया भंगा अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिया ।
- भग० श २६ | उ १ । प्र १६ । पृ० ८६६
लेश्या की अपेक्षा ज्ञानावरणीय कर्म के बंधन की वक्तव्यता, पापकर्म - बंधन की वक्तव्यता की तरह औधिक जीव तथा नारकी यावत् वैमानिक देव के सम्बन्ध में कहनी । प्रत्येक में सशी पद तथा जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने । औधिक जीवपद तथा मनुष्यपद में अलेशी पद भी कहना ।
७४. १३ सलेशी औधिक जीव दंडक और दर्शनावरणीय कर्म बंधन :
एवं दरिसणावर णिज्जेण वि दंडगो भाणियव्वो निरवसेसो ।
- भग० श २६ | उ १ | प्र १६ । पृ० ८६६ ज्ञानावरणीय कर्म के बंधन की वक्तव्यता की तरह दर्शनावरणीय कर्म-बंधन की वक्तव्यता भी निरवशेष कहनी ।
७४ १४ सलेशी औधिक जीव-दंडक और वेदनीय कर्म बंधन :
जीणं भंते! वेयणिज्जं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए बंधी बंध बंधिस्सइ (१), अत्येगइए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ (२), अत्थेगइए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ (४), सलेस्से वि एवं चैव तइयविहूणा भंगा । कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढमबिइया भंगा, सुक्कलेस्से तइयविहूणा भंगा, अलेस्से चरिमो भंगो ।
इणं भंते! वेयणिज्जं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ० ? एवं नेरइया, जाव मणियति । जस्स जं अस्थि सव्वत्थ वि पढमबिइया, नवरं मणुस्से जहा जीवे ।
-भग० श २६ । उ १ । प्र १७-१८ । पृ० ८६६-६००
कोई एक सलेशी जीव प्रथम विकल्प से, कोई एक द्वितीय विकल्प से, कोई एक चतुर्थ विकल्प से वेदनीय कर्म का बंधन करता है। तृतीय विकल्प से कोई भी सलेशी जीव वेदनीय कर्म का बंधन नहीं करता है । कृष्णलेशी यावत् पद्मलेशी जीव कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से वेदनीय कर्म का बंधन करता है । शुक्ललेशी जीव कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से, कोई चतुर्थ विकल्प से वेदनीय कर्म का बंधन करता है । अलेशी जीव चतुर्थ विकल्प से वेदनीय कर्म का बंधन करता है I
सशी नारकी यावत् वैमानिक देव तक मनुष्य को छोड़कर कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से वेदनीय कर्म का बंधन करता है। जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने । मनुष्य में जीवपद की तरह वक्तव्यता कहनी ।
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