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लेश्या - कोश
-७३ सलेशी जीव और त्रिविध बंध :
कवि णं भंते! बँधे पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तंजहा जीवपओगबंधे, अणंतरबंधे, परंपरबंधे । x x x दंसणमोहणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स कवि बंधे पन्नत्ते ? एवं चेव, निरंतरं जाव वैमाणियाण, x x x एवं एएणं कमेणं XXX कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए x x x एएसि सव्वेसि पयाणं तिविहे बंधे पन्नत्ते । सव्वे एए चवीसं दंडगा भाणियव्वा, नवरं जाणियव्वं जस्स जइ अत्थि । - भग० श २० । उ ७ । प्र १, ८ | ०८०३
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कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या का बंध तीन प्रकार का होता है जैसे- जीवप्रयोगबंध, अनन्तरबंध व परंपरबन्ध । नारकी की कापोतलेश्या का बंध भी तीन प्रकार का होता है । यथा - जीवप्रयोगबंध, व अनंतरबंध, परंपरबंध | इसी प्रकार यावत् वैमानिक दंडक तक तीन प्रकार का बंध कहना तथा जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने ।
जीवप्रयोगबंध :--- जीव के प्रयोग से अर्थात् मनप्रभृति के व्यापार से जो बंध हो वह जीवप्रयोगबंध है । अनंतरबंध :- जीव तथा पुद्गलों के पारस्परिक बंध का जो प्रथम समय है वह अनंतरबंध है ; तथा बंध होने के बाद जो दूसरे, तीसरे आदि समय का प्रवर्तन है वह परम्परबंध है ।
·७४ सलेशी जीव और कर्म बंधन :
*७४१ सलेशी औधिक जीव-दण्डक और कर्म बंधन :
७४.११ सलेशी औधिक जीव-दंडक और पाप कर्म बंधन : -
सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ (१), बंधी बधइ ण बंधि (२), [बंधी ण बंधइ बंधिस्सर (३), बंधी ण बंधइ ण बंधिस्सर (४ ) ] पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए बंधी बंधइ बंधिस्सइ (१), अत्थेगइए० एवं चउभंगो । कण्हलेस्से भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए बंधी बंधइ बंधिस्सइ ; अत्थेrइए बंधी बंध ण बंधिस्सइ ; एवं जाव-पम्हलेस्से सव्वत्थ पढमबिइयाभंगा | सुक्कलेस्से जहा सलेस्से तहेव चउभंगो । अलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी० गोमा ! बंधी ण बंधइ ण बंधिस्सर ।
पुच्छा
भग० श २६ । उ १ । प्र २ से ४ । पृ० ८८ जीव के पापकर्म का बंधन चार विकल्पों से होता है, यथा- (१) कोई एक जीव बांधा है, बांधता है, बांधेगा, (२) कोई एक बांधा है, बांधता है, न बांधेगा, (३) कोई एक बांधा है, नहीं बांधता है, बांधेगा, (४) कोई एक बांधा है, न बांधता है, न बांधेगा ।
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