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लेश्या - कोश
१७३
अपेक्षा चारों दिशाओं में तथा चारों विदिशाओं में अधिकतर क्षेत्र को जानता है व देखता है ; दूरतर क्षेत्र को जानता है, देखता है; विशुद्धतर क्षेत्र को जानता है व देखता है । -७० सलेशी जीव और अनन्तर भव में मोक्ष प्राप्ति :
* ७०१ कापोतलेशी जीव की अनन्तर भव में मोक्ष प्राप्ति :
से नूणं भंते! काऊ स्से पुढविकाइए काऊलेस्सेहिंतो पुढविकाइएहिंतो अनंतरं वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभइ माणुसं विग्गहं लभत्ता केवलं बोहि बुज्झर केवलं बोहिं बुज्झत्ता तओ पच्छा सिज्झइ जाव अंतं करेइ ? हंता मागंदियपुत्ता ! काऊलेस्से पुढविकाइए जाव अंतं करेइ ।
से नूणं भंते । काऊलेस्से आउकाइए काऊलेस्सेहितो आउकाइएहितो अनंतरं उट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभइ माणुसं विग्गहं लभत्ता केवलं बोहि बुर, जाव अंत करे ? हंता मार्गदिय पुत्ता ! जाव अंत करेइ ।
से नूणं भंते! काऊलेस्से वणस्सइकाइए एवं चेव जाव अंत करेइ । - भग० श १६ । उ ३ । प्र० १ से ३ | पृ० ७६६ कापोतलेशी पृथ्वीकायिक जीव कापोतलेशी पृथ्वीकायिक योनि मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलबोधि को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अंत करता है ।
कापोतलेशी अपकायिक जीव कापोतलेशी अपकायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य शरीर को प्राप्त करके, केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है ।
कापोतलेशी वनस्पतिकायिक जीव कापोतलेशी वनस्पतिकायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है ।
आर्यों के पूछने पर भगवान महावीर ने भी ( अहंपि णं अज्जो ! एवमाक्खामि ) माकंदीपुत्र के उपर्युक्त कथन का समर्थन किया है ।
७०२ कृष्णलेशी जीव की अनंतर भव में मोक्ष प्राप्ति :
एवं खलु अज्जो ! कण्हलेस्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेहिंतो पुढविकाइएहिंतो जाव अंत करेइ ; एवं खलु अज्जो ! नीललेस्से पुढविकाइए जाव अंत करेइ, एवं
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