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लेश्या - कोश
काऊलेस्से वि, जहा पुढविकाइए x x x एवं आउकाइए वि एवं वणरसइकाइए वि
सच्चणं समट्ठे ।
-भग० श १८ । उ३ । प्र ३ । पृ० ७६६-६७
कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक जीव कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक योनि से, कृष्णलेशी अप्कायिक जीव कृष्णलेशी अपकायिक योनि से तथा कृष्णलेशी वनस्पतिकायिक जीव कृष्णलेशी वनस्पतिकायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनंतर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य के शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है ।
७०.३ नीललेशी जीव की अनन्तर भव में मोक्ष प्राप्ति :
नीलेशी पृथ्वीकायिक जीव नीललेशी पृथ्वीकायिक योनि से, नीललेशी अपकायिक जीव नीललेशी अपकायिक योनि से तथा नीललेशी वनस्पतिकायिक जीव नीललेशी वनस्पतिकायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनंतर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है मनुष्य के शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है । (देखो पाठ ७० २)
-७१ सलेशी जीव और आरम्भ - परारम्भ - उभयारम्भ अनारम्भ :
जीवा णं भंते! किं आयारंभा, परारंभा तदुभयारंभा, अनारंभा ? गोयमा ! अत्गइया जीवा आयारंभा वि परारंभा वि तदुभयारंभा ; नो अणारंभा ; अत्थे - गइया जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अणारंभा । सेकेण भंते ! एवं वुञ्चइ -- अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि एवं पडिउच्चारे यव्वं ? गोयमा, जीवा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा संसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य, तत्थ गं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं नो आयारंभा जाव अणारंभा ; तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा- संजया य असंजया य, तत्थ जे ते संजया ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा - पमत्त संजया य अप्पमत्त संजया य, तत्थ णं जे ते अप्पमत्तसंजया ते णं नो आयारंभा, नो परारंभा जाव अणारंभा, तत्थ
जे ते पमत्त संजया ते सुहं जोगं पडुच्च नो आयारंभा नो परागंभा जाव अणारंभा, अभं जोगं पडुच्च आयारंभा वि जाव नो अणारंभा, तत्थ णं जेते असंजया ते अविरतिं पहुचन आयारंभा वि जाव नो अणारंभा, से तेणट्टणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - अत्थेगइया जीवा जाव अणारंभा ।
सलेस्सा जहा ओहिया, कण्हलेसरस, नीललेसरस, काऊलेसस्स जहा ओहिया
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