________________
लेश्या-कोश कापोतलेश्या की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग सहित तीन सागरोपम की होती है।
नीललेश्या की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग सहित तीन सागरोपम की, उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग सहित दस सागरोपम की होती है।
कृष्णलेश्या की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग सहित दस सागरोपम की, उत्कृष्ट स्थिति रेंतीस सागरोपम की होती है।
( उपरोक्त ) लेश्याओं की यह स्थिति नारकी की कही गई है। '५४ २ तिर्यच की लेश्या स्थिति :
अंतोमुहत्तमद्ध लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ। तिरियाण नराणं वा वजित्ता केवलं लेसं ।।
-उत्त० अ ३४ । गा ४५ । पृ० १०४७ तिर्यच की सर्व लेश्याओं की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त की है। "५४.३ मनुष्य की लेश्या की स्थिति :क-पाँच लेश्या की स्थिति
अंतोमुहुत्तमद्धं लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ। तिरियाण नराणं वा वज्जित्ता केवल लेसं॥
-उत्त० अ ३४ । गा ४५। पृ० १०४७ मनुष्यों में शुक्ललेश्या को छोड़कर अवशिष्ट सब लेश्याओं की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। ख-शुक्ललेश्या की स्थिति :
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुव्वकोडी ओ। नवहिं वरिसेहिं ऊणा, नायव्वा सुकलेसाए ।।
-उत्त० अ ३४ । गा ४६ । पृ० १०४७ शुक्ललेश्या की स्थिति-जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट नौ वर्ष न्यून एक करोड़ पूर्व की है। •५४.४ देव की लेश्या स्थिति :
तेण परं वोच्छामि, लेसाण ठिई उ देवाणं ॥ दस वाससहस्साई, किण्हाए ठिई जहन्निया होइ। पलियमसंखिज्जइमो, उक्कोसा होइ किण्हाए । जा किण्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नेणं नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org