________________
लेश्या - कोश
तमतमाप्रभा पृथ्वी के जो चार असंख्यात विस्तार वाले नरकावास हैं उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से असंख्यात परम कृष्णलेशी नारकी उत्पन्न ( ग० १ ) हांते हैं; जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से असंख्यात परम कृष्णलेशी नारकी मरण ग० २ ) को प्राप्त होते हैं; तथा एक समय में असंख्यात परम कृष्णलेशी नारकी अवस्थित ( ग० ३ ) रहते हैं ।
१६२
सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नरकावास एक लाख योजन विस्तार वाला है तथा बाकी चार नरकावास असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं। देखो - जीवा० प्रति ३ । उ२ । सू८२ | पृ० १३८, तथा ठाण० स्था ४ । उ ३ । सू ३२६ | पृ० २४६ ।
'६८२ देवावासों में :
चोट्टी णं भंते! असुरकुमारावास सय सहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु असुरकुमारावासे एगसमएणं x x x केवइया तेऊलेस्सा उववज्जंति xxx एवं जहा रणभाए तव पुच्छा, तहेव वागरणं । x x x उब्वट्टतगा वि तहेव x x x तिसु वि गमएस संखेज्जेसु चत्तारि लेस्साओ भाणियव्वाओ, एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि नवरं तिसु वि गमएस असंखेज्जा भाणियव्वा । प्र ४ |
केवइया णं भंते! नागकुमारावास० एवं जाव थणियकुमारावास० नवरं जत्थ जत्तिया भवणा । प्र ५ ।
संखेज्जेसु णं भंते! वाणमंतरावाससयसहस्सेसु एगसमएणं केवइया वाणमंतराववज्जंति ? एवं जहा असुरकुमाराणं संखेज्जवित्थडेसु तिन्नि गमगा तहेव भाणियव्वा, वाणमंतराण वि तिन्नि गमगा । प्र ७ ।
केवइया णं भंते! जोइसिय विमाणावासय सहस्सा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा जोइसिय विमाणावाससय सहस्सा पन्नत्ता, ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा० ? एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाण घि तिन्नि गमगा भाणियव्वा नवरं एगा ऊलेस्सा | ८ |
सोहम्मे णं भंते! कप्पे बत्तीसार विमाणावाससय सहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु विमाणे एगसमएणं केवइया x x x तेऊलेस्सा उववज्जंति ? xxx एवं जहा जोइसियाणं तिन्नि गमगा तहेत्र तिन्नि गमगा भाणियव्वा नवरं तिसु वि संखेज्जा भाणियव्त्रा । × × × असंखेज्ज वित्थडेसु एवं चेव तिन्नि गमगा, नवरं तिसु विगमएस असंखेज्जा भाणियव्वा । xxx एवं जहा सोहम्मे वत्तव्वया भणिया तहा ईसाणे विछ गमगा भाणियव्वा । सणकुमारे (वि) एवं चेव x x x एवं जाव सहस्सारे, नात विमाणेसु लेस्सासु य, सेसं तं चेव । प्र १० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org