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लेश्या - कोश
१३३
गमक - १- ६ : सहस्रार कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं । देखो पाठ ५८ १६२३ ) उनमें नौ गमकों में ही एक शुक्ललेश्या होती है ( '५८ १८३१ ) ।
- भग० श २४ । उ २१ । प्र । पृ० ८४५ '५८*१६*२६ आनत यावत् अच्युत ( आनत, प्राणत, आरण तथा अच्युत ) देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में :--
गमक-१-६ : आनत यावत् अच्युत देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( आणय देवे णं भंते! जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए x x x ते णं भंते ! एवं जहेव सहस्सारदेवाणं वत्तव्वया x x x सेसं तं चेव x x x एवं णव वि गमगा० × × × एवं जाव -अच्चुयदेवो x x x ) उनमें नौ गमको में ही एक शुक्ललेश्या होती है ( '५८१६२८7 ५८ १८३१ ) ।
भग० श २४ । उ २१ । प्र १०-११ । पृ० ८४५
उत्पन्न होने योग्य
'५८'१६·३० ग्रैवेयक कल्पांतीत ( नौ ग्रैवेयक ) देवों से मनुष्य योनि जीवों में :
गमक- १-६ : ग्रैवेयक कल्पातीत देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( गेवेज्ज(ग)देवे णं भंते! जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए Xxx अवसेसं जहा आणय देवस्स वत्तव्वया xxx सेसं तं चैव । x x x एवं सेसेसु वि अट्ठगमएस xxx ) उनमें नौ गमकों में ही एक शुक्ललेश्या होती है ( ५८१६२६ ) ।
- भग० श २४ । उ २१ । प्र १४ । पृ० ८४६ *५८१६३१ विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजित अनुत्तरौपपातिक कल्पातीत देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में :
गमक- १-६ : विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजित अनुत्तरौपपातिक कल्पातीत देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजियदेवे भंते! जे भवि मस्सेसु उववज्जित्तए x x x एवं जहेव गेवेज्ज ( ग ) देवाणं । xxx एवं सेसा वि अट्ठगमगा भाणियव्वा x x x सेसं तं चेव ) उनमें नौ गमकों में ही एक शुक्ललेश्या होती है ( '५८१६३० ) ।
- भग० श २४ । उ २१ । प्र० १६ । पृ० ८४६
*५८'१६ ३२ सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने
योग्य जीवों में :
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