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लेश्या-कोश _५८ के सभी पाठ भगवती शतक २४ से लिए गए हैं। इस शतक में स्व/पर योनि से स्व/पर योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों का नौ गमकों तथा उपपात के अतिरिक्त निम्न लिखित बीस विषयों की अपेक्षा से विवेचन हुआ है :
(१) स्थिति, (२) संख्या, (३) संहनन, (४) शरीरावगाहना, (५) संस्थान, (६) लेश्या, (७) दृष्टि, (८) ज्ञान, (६) योग, (१०) उपयोग, (११) संज्ञा, (१२) कषाय, (१३) इंद्रिय, (१४) समुद्घात, (१५) वेदन, (१६) वेद, (१७) कालस्थिति, (१८) अध्यवसाय, (१६) कालादेश तथा (२०) भवादेश। हमने लेश्या की अपेक्षा से पाठ ग्रहण किया है। गमकों का विवरण पृ० १०० पर देखें । .५६ जीव समूहों में कितनी लेश्या :___सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच पुढविकाइया एगयओ साहारणसरीरं बंधति xxx ? नो इण? सम?। xxx पत्तेयं सरीरं बंधंति। xxx तेसिणं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहाकण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा, तेऊलेस्सा ।
सिय भंते! जाव -- चत्तारि पंच आउक्काइया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति xxx एवं जो पुढविकाइयाणं गमो सो चेव भाणियव्यो।
सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच तेउक्काइया० एवं चेव । नवरं उववाओ ठिई उध्वट्टणा य जहा पन्नवणाए, सेसं तं चेव । वाउकाइयाणं एवं चेव । _____टीका-लेश्यायामपि यतस्तेजसोऽप्रशस्तलेश्या एव पृथिवीकायिकास्त्वाद्यचतुलेश्याः, यच्चेदमिह न सूचितं तद्विचित्रत्वात्सूत्रगतेरिति ।
सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच वणस्सइकाइया० पुच्छा। गोयमा ! जो इण? सम? । अणंता वणस्सइकाइया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति । सेसंजहा तेउकाइयाणं जाव--उन्वति x x x सेसं तं चेव ।
-भग० श १६ । उ ३ । प्र० १, २, १७, १८, १६ । पृ० ७८१-८२ सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच बेंदिया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति xxx णो इण? समठे। xxx पत्तेयसरीरं बंधंति । xxx तेसिणं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तंजहा- कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा। xxx एवं तेइ दिया(ण) वि, एवं चउरदिया(ण) वि । xxx सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच पंचिंदिया एगयओ साहारण ? एवं जहा बेंदियाणं, नवरं छल्लेसाओ।
-भग० श २० । उ १ । प्र १ से ४ । पृ० ७६०
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