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लेश्या-कोश
१४६ नोसन्नी-नोअसन्नी [ नोसन्नी-नोअसन्नी जीवपए सिद्धपए य अचरिमे मणुस्सपए चरिमे एगत्तपुहुत्तणं ।।
-भग० श १८ । उ १। प्र २६ । पृ० ७६३ सलेशी, कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी जीव सर्वत्र एकवचन की अपेक्षा कदाचित् चरम भी कदाचित् अचरम भी होता है। बहुवचन की अपेक्षा सलेशी यावत् शुक्ललेशी चरम भी होते हैं, अचरम भी। अलेशी जीवपद से तथा सिद्धपद से अचरम है तथा मनुष्यपद से चरम है एकवचन से भी, बहुवचन से भी।
'६४ सलेशी जीव की सलेशीत्व की अपेक्षा स्थिति :६४.१ सलेशी जीव की स्थिति :
सलेसे णं भंते ! सलेसेत्ति पुच्छा। गोयमा ! सलेसे दुविहे पन्नत्ते, तंजहाअणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए ।
--पण्ण ० प १८ । द्वा८ । सू ६ । पृ० ४५६ सलेशी जीव सलेशीत्व की अपेक्षा दो प्रकार के होते हैं। (१) अनादि अपर्यवसित तथा (२) अनादि सपर्यवसित । '६४ २ कृष्णलेशी जीव की स्थिति :
कण्हलेस्से णं भंते ! कण्हलेसेत्ति कालओ केवञ्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तमब्भहियाई।
-पण्ण० प १८ । द्वा८। सू६ । पृ० ४५६
- जीवा० प्रति ६ । सू २६६ । पृ० २५८ कृष्णलेशी जीव की कृष्णलेशीत्व की अपेक्षा जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट स्थिति साधिक अंतर्महूर्त तैंतीस सागरोपम की होती है। ६४.३ नीललेशी जीव की स्थिति :
(क) नीललेस्से णं भंते ! नीललेसेत्ति पुच्छा ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिओवमासंखिज्जइभागमब्भहियाई ।
-पण्ण० प १८ । द्वा ८। सू ६ । पृ० ४५६ (ख) नीललेस्से णं भंते ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमभहियाई।
---जीवा० प्रति ह । सू २६६ । पृ० २५८ नीललेशी जीव की नीललेशीत्व की अपेक्षा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम की होती है ।
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