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लेश्या-कोश तल्लेसे उववट्टइ। एवं मणूसे वि। वाणमंतरा जहा असुरकुमारा। जोइसियवेमाणिया वि एवं चेव, नवरं जस्स जल्लेसा। दोण्ह वि 'चयणं' ति भाणियव्वं ।
-पण्ण० प १७ । उ ३ । सू २८ । पृ० ४४३-४४ कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी नारकी क्रमशः कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी नारकी में उत्पन्न होता है तथा कृष्णलेश्या, नीललेश्या तथा कापोतलेश्या में मरण को प्राप्त होता है। जिस लेश्या में वह उत्पन्न होता है उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है।
कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी तथा तेजोलेशी असुरकुमार क्रमशः कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी तथा तेजोलेशी असुरकुमार में उत्पन्न होता है, तथा जिस लेश्या में उत्पन्न होता है उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक कहना।
कृष्णलेशी यावत् तेजोलेशी पृथ्वीकायिक क्रमशः कृष्णलेशी यावत तेजोलेशी पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है ; तथा कदाचित् कृष्णलेश्या में, कदाचित् नीललेश्या में तथा कदाचित् कापोतलेश्या में मरण को प्राप्त होता है। कदाचित् जिस लेश्या में वह उत्पन्न होता है उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है। वह तेजोलेश्या में उत्पन्न होता है परन्तु तेजोलेश्या में मरण को प्राप्त नहीं होता है।
इसी प्रकार अप्कायिक तथा वनस्पतिकायिक जीवों के संबन्ध. में कहना।
कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी अग्निकायिक क्रमशः कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी अग्निकायिक में उत्पन्न होता है। वह कदाचित् कृष्णलेश्या में, कदाचित् नीललेश्या में तथा कदाचित् कापोतलेश्या में मरण को प्राप्त होता है। कदाचित् जिस लेश्या में वह उत्पन्न होता है, उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है । ___ इसी प्रकार वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, तथा चतुरिन्द्रिय के सम्बन्ध में कहना।
कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी तिर्यचपंचेन्द्रिय कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी तिर्यंचपंचेन्द्रिय में उत्पन्न होता है। वह कदाचित् कृष्णलेश्या में कदाचित् शुक्ललेश्या में मरण को प्राप्त होता है; कदाचित् जिस लेश्या में उत्पन्न होता है उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है।
इसी प्रकार मनुष्य के सम्बन्ध में कहना। वानव्यंतर देव के विषय में भी वैसा ही कहना, जैसा असुरकुमार के सम्बन्ध में कहा।
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