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लेश्या - कोश
अश्रुत्वा केवली होने वाले जीव के विभंग अज्ञान की प्राप्ति के बाद मिथ्यात्व के पर्याय क्षीण होते-होते, सम्यग्दर्शन के पर्याय बढ़ते-बढ़ते विभंग अज्ञान सम्यक्त्वयुक्त होता है तथा अति शीघ्र अवधिज्ञान रूप परिवर्तित होता है । उस अवधिज्ञानी जीव के तीन विशुद्ध लेश्या होती है ।
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२- श्रुत्वा केवली होने वाले जीव के अवधिज्ञान के प्राप्त करने की अवस्था में :-- ( सोच्चा णं भंते x x से णं ते णं ओहीनाणेणं समुप्पन्नेणं xx ) से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा ! छसु लेस्सासु होज्जा । तंजहा, कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए ।
-भग० श ६ | उ ३१ । प्र ३५ । पृ० ५८०
श्रुत्वा केवली होने वाले जीव के अवधिज्ञान की प्राप्ति होने के बाद उस अवधिज्ञानी जीव के छः लेश्या होती है ।
टीकाकार ने इसका इस प्रकार स्पष्टीकरण किया है
“यद्यपि भावलेश्यासु प्रशस्तास्वेव तिसृष्ववधिज्ञानं लभते तथाऽपि द्रव्यलेश्याः प्रतीत्य षट्स्वपि लेश्यासु लभते सम्यक्त्वश्रुतवत्" । यदाह - ' सम्मत्तस्य सव्वासु लब्भइ' त्ति तल्लाभे चासौ षट्स्वपि भवतीत्युच्यते इति ।
- भग० श ह । उ ३१ पर टीका यद्यपि अवधिज्ञान की प्राप्ति तीन शुभलेश्या में होती है परन्तु द्रव्यलेश्या की अपेक्षा सम्यक्त्वश्रुत की तरह छओं लेश्या में अवधिज्ञान होता है। जैसा कहा है – सम्यक्त्वश्रुत छओं लेश्या में प्राप्त होता है ।
• ५४ विभिन्न जीव और लेश्या स्थिति
५४. १ नारकी की लेश्या स्थिति :
दस वाससहरसाईं, काऊए ठिई जहन्निया होइ । तिष्णुदही पलियवमसंखभागं च उक्कोसा ॥ तिष्णुदही पलियवमसंखभागो जहन्न नीलठिई । दस उदही पलिओवममसंखभागं च उक्कोसा ॥ दस दही पलिओत्रममसंखभागं जहन्निया होइ। तेत्तीस सागराई उक्कोसा होइ किण्हाए लेसाए ॥ एसा नेरइयाणं, लेसाण ठिई उ वष्णिया होइ, ।
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-- उत्त० अ ३४ । गा ४१-४४ | पृ० १०४७
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