________________
१०४
लेश्या-कोश ___गमक-८ : उत्कृष्टस्थितिवाले पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच योनि से जघन्यस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं। (सो चेव जहन्नकालट्ठिईएसु उववन्नो xxx ते णं भंते! जीवा० सो चेव सत्तमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं।
-भग० श २४ । उ १ । प्र ७०, ७१ । पृ० ८२०
गमक-8 : उत्कृष्ट स्थितिवाले पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच योनि से उत्कृष्ट स्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( उक्कोसकालठ्ठिईयपज्जत्त० जाव-तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालट्ठिईय० जाव-उववज्जित्तए xxx ते णं भंते! जीवा० सो चेव सत्तमगमओ निरवसेसो भाणियव्वो) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं।
-भग० श २४ । उ १ । प्र ७२, ७३ । पृ० ८२०-२१
"५८ १३ पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्य से रलप्रभापृथ्वी के नारकी में
उत्पन्न होने योग्य जीवों में :
गमक-१-६ : पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञो मनुष्य से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं (पज्जत्त संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए xxx ते णं भंते ! एवं सेसं जहा सन्निपंचिंदयतिरिक्खजोणियाणं-जाव-'भवाएसो' ति। ग०१। सो चेव जहन्नकालटिईएसु उववन्नो--एस (सा) चेव वत्तव्वया। ग०२ । सो चेव उक्कोसकालटिईएसु उव्ववन्नो-एस चेव वत्तव्वया। ग०३। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठिईओ जाओ-एस चेव वत्तव्वया । ग०४। सो चेव जहन्नकालट्ठिइएसु उठवन्नो-एस चेव वत्तव्या चउत्थगमग सरिसा णेयव्वा। ग०५। सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएस उवन्नो-एस चेव गमगो। ग०६। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठिईओ जाओ, सो चेव पढमगमओ णेयव्वो। ग० ७। सो चेव जहन्नकालटिईएसु उववन्नो, सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया। ग०८। सो चेव उक्कोसकाल ट्ठिईएसु उववन्नो, सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया। ग०६ ) उनमें नव ही गमकों में छ लेश्या होती हैं।
-भग० श २४ । उ १ । प्र ६१-१०० । पृ० ८२३-२४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org