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लेश्या-कोश
१२१ xxx ते णं भंते ! जीवा०? एवं परिमाणादीया अणुबंधपज्जवसाणा जच्चेव अप्पणो सट्टाणे वत्तव्वया सच्चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु वि उववज्जमाणस्स भाणियव्वा। xxx जइ आउक्काइएहिंतो उववज्जति ? एवं आउकाइयाण वि । एवं जाव - चरिंदिया उववाएयव्वा । नवरं सव्वत्थ अपणो लद्धी भाणियव्वा । xxx जहेव पुढविक्काइएसु उववजमाणाणं लद्धी तहेव सव्वत्थ xxx) उनमें प्रथम के तीन गमकों में चार लेश्या, मध्यम के तीन गमकों में तीन लेश्या तथा शेष के तीन गमकों में चार लेश्या होती हैं ( देखो ५८.१०.२)।
--भग० श २४| उ २० । प्र १०-१२। पृ० ८३६-४० ५८.१८१० अग्निकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने योग्य
जीवों में :गमक-१-६ : अग्निकायिक योनि से पंचेंद्रिय तियं च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर '५८१८६) उनमें नौ गमकों में ही तीन लेश्या होती हैं ( देखो '५८'१०.३)।
-भग० श २४ । उ २० । प्र १०.१२ । पृ० ८३६-४० ५८१८११ वायुकायिक योनि से पंचेंद्रिय तियच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में :
गमक-१-६ : वायुकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तियच योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर 'पू८१८६) उनमें नव गमकों में ही तीन लेश्या होती हैं ( देखो ५८.१०.४)।
-भग० २४ । उ २० । प्र १०-१२ | पृ० ८३६.४० '५८ १८.१२ वनस्पतिकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने योग्य
जीवों में :गमक-१-६ : वनस्पतिकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर '५८१८६ ) उनमें प्रथम के तीन गमकों में चार लेश्या, मध्यम के तीन गमकों में तीन लेश्या तथा शेष के तीन गमकों में चार लेश्या होती हैं ( देखो '५८ १०५)।
-भग० श २४ । उ२०। प्र१०-१२ | पृ० ८३६-४० 'पू८१८ १३ द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में :
गमक-१-६ : द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर '५८१८६) उनमें नौ गमकों में ही तीन लेश्या होती हैं ( देखो ५८.१०.६)।
-भग० श २४ । उ २० । प्र १०-१२। पृ०८३६-४०
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