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लेश्या-कोश .५६ जीव और लेश्या समपद
१-नारकी और लेश्या समपद :____ (क) नेरइया णं भंते ! सव्वे समलेस्सा ? गोयमा ! नो इण? सम? । से केणटेणं जाव नो सव्वे समलेस्सा ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा पुवोववनगा य, पच्छोववन्नगा य, तत्थ णं जे ते पुरोववन्नगा ते णं विसुद्धलेस्सतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं अविसुद्धलेस्सतरागा, से तेण?णं ।
-भग० श १ । उ २ । प्र ७५-७६ पृ० ३६१ (ख) एवं जहेव वन्नेणं भणिया तहेव लेस्सासु विशुद्धलेसतरागा अविशुद्धले. सतरागा य भाणियव्वा ।
-पण्ण० प १७ । उ १ । सू ३ । पृ० ४३५ नारकी दो तरह के होते हैं यथा-१ पूर्वोपपन्नक, २ पश्चादुपपन्नक। उनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं वे विशुद्धलेश्या वाले होते हैं, तथा जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्धलेश्या वाले होते हैं । अतः नारकी समलेश्या वाले नहीं होते हैं।
२–पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय तथा मनुष्य और लेश्या समपद :--
क-पुढविकाइयाणं आहारकम्मवन्न लेस्सा जहा नेरइयाणं x x जहा पुढविकाइया तहा जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया । xx मणुस्सा जहा नेरइया।
-भग० श १ । उ २। प्र८४, ८६, ६०, ६३ । पृ० ३६२ ख-पुढविकाइया आहारकम्मवन्नलेस्साहि जहा नेरड्या ४ एवं जाव चउरिदिया। पंचेदिय तिरिक्खजोणिया जहा नेरक्या। मणुस्सा सव्वे णो समाहारा। सेसं जहा नेरइयाणं।
-पण्ण० प १७ । उ १। सू ८-६ । पृ० ४३६ पृथ्वीकाय यावत् बनस्पतिकाय, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यच पंचेन्द्रिय, मनुष्य-नारकी की तरह समलेश्या वाले नहीं होते हैं।
३–देव और लेश्या समपद :१-असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देव में
क-(असुर कुमारा ) एवं वन्नलेस्साए पुच्छा ! तत्थ णं जे ते पूव्वोववन्नगा तेणं अविशुद्धवन्नतरागा, तत्थ जे ते पच्छोववन्नगा ते णं विशुद्धवन्नतरागा, से
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