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लेश्या-कोश उववज्जइ, तं जहा-कण्हलेसेसु वा नीललेसेस वा काऊलेसेस वा; एवं जस्स जा लेस्सा सा तस्स भाणियव्वा । जाव-जीवे णं भंते ! जे भविए जोइसिएसु उववज्जित्तए ? पुच्छा, गोयमा ! जल्लेसाई दव्वाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववज्जइ, तं जहा-तेऊलेसेसु । जीवे णं भंते ! जे भविए वेमाणिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! किं लेसेसु उववज्जइ ? गोयमा ! जल्लेसाई दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेस उववज्जइ; तं जहा तेऊलेसेसु वा पम्हलेसेसु वा सुक्कलेसेसु वा।
-भग० श ३ । उ ४ । प्र १७, १८, १६ | पृ० ४५६ लेश्या अनुपातगति विहायगति का १२वाँ भेद है। देखो पण्ण० प १६ । सू १४ । पृ० ४३२-३) जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके जीव काल करता है उसी लेश्या में जाकर उत्पन्न होता है, इसे लेश्या के अनुपातगति कहते हैं ।
जो जीव जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके काल करता है वह उसी लेश्या में जाकर उत्पन्न होता है। भविक नारक कृष्ण, नील या कापोत लेश्या ; भविक ज्योतिषी देव तेजोलेश्या, भविक वैमानिक देव तेजो, पद्म या शुक्ललेश्या के द्रव्यों ग्रहण करके जिस लेश्या में काल करता है उसी लेश्या में उत्पन्न होता है। या दण्डक में जिस जीव के जो लेश्यायें कही है उसी प्रकार कहना । २८.२ द्रव्यलेश्या का परिणमन और जीव के उत्पत्ति-मरण के नियम ।
लेसाहिं सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ।। लेसाहिं सवाहिं, चरिमे समय म्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ।। अंतमुहुत्तम्मि गए, अंतमुहुत्तम्मि सेसए चेव । लेसाहिं परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ।।
-उत्त० अ ३४ । गा ५८, ५६, ६० । पृ० १०४८ सभी लेश्याओं की प्रथम समय की परिणति में किसी भी जीव की परभव में उत्पत्ति नहीं होती है तथा सभी लेश्याओं की अन्तिम समय की परिणति में भी किसी जीव की परभव में उत्पत्ति नहीं होती है। लेश्या की परिणति के बाद अन्तमुहूर्त बीतने पर और अन्तमुहूर्त शेष रहने पर जीव परलोक में जाता है।
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