________________
६६
लेश्या-कोश (छ) ( पुढविकाइए णं भन्ते ! जे भविए पुढ विकाइएसु उववजित्तए ) सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठिईओ जाओ xx लेस्साओ तिन्नि।
-भग० श २४ । उ १२ । प्र८। पृ० ८३० पृथ्वीकाय में उत्पन्न होने योग्य जघन्य स्थितिवाले पृथ्वीकायिक जीवों में तीन लेश्या होती है।
(ज) असुरकुमाराणं तओ लेस्साओ संकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तंजहा-कण्हलेस्सा नीललेस्सा काऊलेस्सा xx एवं पुढविकाइयाणं।
-ठाण० स्था ३ । उ १। सू १८१ । पृ० २०५ पृथ्वीकाय में तीन संक्लिष्ट लेश्या होती है, यथा-कृष्ण, नील, कापोतलेश्या। .११.१ सूक्ष्म पृथ्वीकाय में
( सुहुम पुढविकाइया) तेसिणं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा! तिन्नि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तंजहा-कण्हलेस्सा, नीललेस्सा काऊलेस्सा ।
-जीवा० प्रति १ । सू १३ । पृ० १०६ सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीवों में तीन लेश्या होती है, यथा-कृष्ण, नील, कापोत लेश्या। ११२ बादर पृथ्वीकाय में
चार लेश्या होती है। .११.३ स्निग्ध तथा खर पृथ्वीकाय में (सण्हवायर पुढविकाइया; खरवायर पुढविकाइया) चत्तारि लेस्साओ।
-जीवा० प्रति १ । सू १५ । पृ० १०६ स्निग्ध तथा खर बादर पृथ्वीकाय में कृष्णादि चार लेश्या होती है। ११.४ अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में
चार लेश्या होती है। ११.५ पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में
तीन लेश्या होती है। १२ अपकाय में (क) भवणवइवाणमंतर पुढ विआउवणस्सइकाइयाणं च चत्तारि लेस्साओ।
-ठाण० स्था २ । उ १। सू ७२ । पृ० १८४ (ख) आउवणस्सइकाइयाणवि एवं चेव ( जहा पुढविकाइयाणं )।
—पण्ण० प १७ । उ २। सू १३ । पृ० ४३८ (ग) आउकाइया xx एवं जो पुढविकाइयाणं गमो सो चेव भाणियव्वो ।
-भग० श १६ । उ ३ । प्र १७ । पृ० ७८२-८३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org