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लेश्या - कोश
१८ चतुरिंद्रिय में—
देखो ऊपर द्वीन्द्रिय के पाठ (१६) तीन लेश्या होती है ।
* १६ तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय में
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(क) पंचेन्दियतिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! छल्लेसा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा |
-- पुण्ण० प १७ । उ २ | सू १३ | पृ० ४३८
(ख) पंचिदियतिरिक्ख जोणियाणं छ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तंजहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा |
– ठाण० स्था ६ | सू. ५०४ | पृ० २७२
(ग) पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं छल्लेस्साओ ।
- ठाण० स्था २ । उ १ सू० ५१ | पृ० १८४
तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के छ लेश्या होती है यथा - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । संक्लिष्टश्या तीन होती है
(घ) पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओलेस्साओ संकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तं जहा - कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा ।
- ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १८१ । पृ० २०५ तिर्यच पंचेन्द्रिय में तीन संक्लिष्ट लेश्या होती है— यथा - कृष्ण, नील, कापोत । असं क्लिष्ट लेश्या तीन होती है
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(ङ) पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओलेस्साओ असंकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तंजा - तेऊलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा |
ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १८१ । पृ० २०५ तिर्यच पंचेन्द्रिय में तीन असं क्लिष्ट लेश्या होती है यथा - तेजोलेश्या, पद्मलेश्या,
शुक्ललेश्या ।
* १६१ तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के विभिन्न भेदों में
(क) (खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं ) एएसि णं भंते! जीवाणं कइलेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तंजहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेसा ।
(ख) ( भुयपरिसप्पथलय रपंचेंदिय तिरिषखजोणियाण ) एवं जहा खहयराण
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