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लेश्या-कोश अट्ठ। किंमिदं भन्ते ! सुरिए ; किमिदं भन्ते ! सूरियस्स पभा ? एवं चेव, एवं छाया, एवं लेस्सा।
-भग० अ १४ । उ ६ । प्र १०-११ । पृ० ७०७ उगते हुए बाल सूर्य की लेश्या शुभ होती है। टीकाकार ने यहाँ लेश्या का अर्थ 'वर्ण' लिया है। ३.४ सूर्य की लेश्या का प्रतिघात अभिताप
(क) लेस्सापडिघोएणं उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसन्ति लेस्साभितावेणं मज्झन्तियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसन्ति लेस्सापडिघाएणं अत्थमणमुहुत्त सि दूरे य मूले य दीसन्ति, से तेणठणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जम्बुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमण मुहुत्त सि दूरे य मूले य दीसन्ति जाव अत्थमण जाव दीसन्ति ।
-भग० अ८। उ८। प्र० ३८ । पृ० ५६० लेश्या के प्रतिघात से उगता हुआ सूर्य दूर होते हुए भी नजदीक दिखलाई पड़ता है तथा मध्यान्ह का सूर्य नजदीक होते हुए भी लेश्या के अभिताप से दूर दिखलाई पड़ता है। तथा लेश्या के प्रतिघात से डूबता हुआ सूर्य दूर होते हुए भी नजदीक दिखलाई पड़ता है।
लेश्या-प्रतिघात=तेज का प्रतिघात होना अर्थात् कम होना। लेश्या-अभिताप-तेज का अभिताप होना अर्थात् तेज का प्रखर होना।
(ख) ता कस्सि णं सूरियस्स लेस्सापडिहया आहिताइ वएज्जा ? xxx ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं फुसन्ति ते गं पोग्गला सूरियस्स लेसं पडिहणंति, आदिठ्ठावि गं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति, चरिमलेस्संतरगयावि णं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति xxx आहिताइ वएज्जा।
-चन्द० प्रा ५। पृ० ६६४
-सूरि० प्रा ५ । वही पाठ सूर्य की लेश्या का तीन स्थान पर प्रतिघात होता है
(१) जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करते हैं वे सूर्य की लेश्या का प्रतिघातविनाश करते हैं। टीकाकार ने मेरुतट भित्ति संस्थित पुद्गलों का उदाहरण दिया है।
(२) अदृष्ट पुद्गल भी सूर्य की लेश्या का प्रतिघात करते हैं। टीकाकार ने यहाँ भी मेरुतट भित्ति संस्थित सूक्ष्म अदृश्यमान् पुद्गलों का उदाहरण दिया है।
(३) चरमलेश्या अन्तर्गत पुदगल भी सूर्य की लेश्या का प्रतिघात करते हैं। टीकाकार कहते हैं कि मेरु पर्वत के अन्यत्र भी प्राप्त चरमलेश्या के विशेष स्पर्शी पुद्गलों से सूर्य की लेश्या का प्रतिघात होता है ।
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