________________
लेश्या-कोश ३.५ चन्द्र-सूर्य की लेश्या का आवरण
-xxx ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वेमाणे वा परियारेमाणे वा चन्दस्स वा सूरस्स वा लेस्सं आवरेमाणे चिट्ठइ [आवरेत्ता वीइवयइ ], तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वयंति–एवं खलु राहुणा चन्दे वा सूरे वा गहिए -xxx -
चन्द० प्रा० २० । पृ० ७४६
-सूरि प्रा० २० । वही पाठ राहू देव के इस प्रकार आते, जाते, विकुर्वना करते, परिचारना करते सूर्य-चन्द्र की लेश्या का आवरण होता है। इसी को मनुष्य लोक में चन्द्र-सूर्य ग्रहण कहते है।
.४ भावलेश्या .४१ भावलेश्या-जीवपरिणाम
जीवपरिणामे णं भंते ! कइविहे पन्नत्त ? गोयमा ! दसविहे पन्नत्त । तंजहागइपरिणामे १, इंदियपरिणामे २, कसायपरिणामे ३, लेस्सापरिणामे ४, जोगपरिणामे ५, उवओगपरिणामे ६, णाणपरिणामे ७, दसणपरिणामे ८, चरित्तपरिणामे है, वेयपरिणामे १०।
-पण्ण० प० १३ । सू० १ । पृ० ४०८
-ठाण० स्था १० । सू ७१३ । पृ० ३०४ (केवल उत्तर) जीव परिणाम के दस भेद हैं, यथा
१-गति परिणाम, २-इन्द्रिय परिणाम, ३-कषाय परिणाम, ४-लेश्या परि णाम, ५-योग परिणाम, ६-उपयोग परिणाम, ७-ज्ञान परिणाम, ८-दर्शन परिणाम, ६-चारित्र परिणाम तथा १०-वेद परिणाम । ४१.१ लेश्या परिणाम के भेद
लेस्सापरिणामे णं भंते ! कइविहे पन्नत्त? गोयमा ! छविहे पन्नत्ते, तं जहा-कण्हलेस्सापरिणामे, नीललेस्सापरिणामे, काऊलेस्सापरिणामे, तेऊलेस्सापरिणाम, पम्हलेस्सापरिणामे, सुक्कलेस्सापरिणामे ।
-पण्ण० प १३ । सू२ | पृ० ४०६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org