________________
लेश्या-कोश जैसा नारकी के लेश्या परिणाम के विषय में कहा- वैसा ही अग्निकाय-वायुकाय के लेश्या परिणाम के विषय में समझो।
जैसा नारकी के लेश्यापरिणाम के विषय में कहा-वैसा ही बेइन्द्रिय के विषय में समझो। इस प्रकार तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के विषय में समझो।
लेश्यापरिणाम से तिर्यच पचेन्द्रिय कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी होते हैं।
लेश्यापरिणाम से मनुष्य कृष्णलेशी यावत् अलेशी होते हैं अर्थात् छः लेश्यावाले भी होते हैं, अलेशी भी होते हैं।
जैसा असुरकुमार के लेश्या परिणाम के विषय में कहा-वैसा ही वाणव्यंतर देवों के विषय में समझो।
लेश्यापरिणाम से ज्योतिष्क देव तेजोलेशी हैं ।
लेश्यापरिणाम से वैमानिक देव-तेजोलेशी, पद्मलेशी, शुक्ललेशी हैं। ४६.१ भाव परावृत्ति से देव नारकी में लेश्या
भावपरावत्तिए पुण सुर नेरइयाणं पि छल्लेस्सा। भाव की परावृत्ति होने से देव और नारक के भी छ लेश्या होती है।
-पण्ण० प १७ । उ ५। सू ५४ की टीका में उद्धत
•५ लेश्या और जीव .५१ लेश्या की अपेक्षा जीव के भेद ५१.१ जीवों के दो भेद
(क) अहवा दुविहा सव्वजीव पन्नत्ता, तं जहा-सलेस्सा य अलेस्सा य, जहा असिद्धा सिद्धा, सव्व थोवा अलेस्सा सलेस्सा अणंतगुणा।
-जीवा० प्रति ६ । सर्व जीव । सू २४५ । पृ० २५२ (ख) अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तंजहा xxx [ एवं सलेस्सा चेव अलेस्सा चेव xxx ]
-जीवा० प्रति ह । सर्व जी। सू २४५ । पृ० २५१ (ग) दुविहा सव्वजीव पन्नत्ता, तंजहा xxx एवं एसा गाहा फासेयव्वा जाव ससरीरी चेव असरीरी चेव ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org