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लेश्या-कोश अणत्तरोवयाइयाणं देवाणं तेऊलेस्सं वीइवयइ, तेण परं सुक्के सुक्काभिजाए भवित्तातओ पच्छा सिज्झइ जाव अन्तं करेइ ।
(तेऊ-पाठांतर तेय)
-भग श १४ । उ ६ । प्र १२ । पृ० ७०७ जो यह श्रमण निग्रन्थ आर्यत्व अर्थात् पापरहितत्व में विहरता है वह यदि एक मास की दीक्षा की पर्यायवाला हो तो वाणव्यन्तर देवों की तेजोलेश्या* को अतिक्रम करता है ; दो मास की पर्यायवाला असुरेन्द्र बाद भवनपति देवताओं की तेजोलेश्या अतिक्रम करता है ; तीन मास की पर्यायवाला हो तो असुरकुमार देवों की ; चार मास की पर्यायवाला ग्रहगण, नक्षत्र एवं तारागणरूप ज्योतिष्क देवों की ; पांच मास की पर्यायवाला ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा ( चन्द्र-सूर्य ) की ; छ मास की पर्यायवाला सौधर्म और इशानवासी देवों की ; सात मास की पर्यायवाला सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों की; आठ मास की पर्यायवाला ब्रह्मलोक और लांतक देवों की ; नव मास की पर्यायवाला महाशुक्र और सहस्रार देवों की ; दस मास की पर्यायवाला आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवों की; ग्यारह मास की पर्यायवाला वयेक देवों की तथा बारह मास की दीक्षा की पर्यायवाला पापरहित रूप विहरनेवाला श्रमण निग्रन्थ अनुत्तरोपपातिक देवों की तेजोलेश्या को अतिक्रम करता है ।
२६ द्रव्यलेश्या और दुर्गति-सुगति । (क) कण्हानीलाकाऊ, तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ।
एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गई उववज्जई ॥ तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गई उववज्जई ।।
--उत्त० अ ३४ । गा ५६-५७ । पृ० १०४८ (ख) [ तओलेस्साओ xxx पन्नत्ता तं जहा-कण्हलेसा, नीललेसा, काऊलेसा, तओलेस्साओ xxx पन्नत्ता तं जहा-तेऊ, पम्ह सुक्कलेस्सा ] एवं ( तिन्नि ) दुग्गइगामिणीओ ( तिन्नि ) सुग्गइगामिणीओ।
-ठाण स्था ३ । उ ४ । सू २२ । पृ० २२० * तेजोलेश्या का यहाँ टीकाकार ने "सुखासिकाम' अर्थ किया है।
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