________________
लेश्या-कोश २०.२ नील लेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती।
से नूणं भन्ते ! नीललेस्सा काऊलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ? हंता गोयमा ! नीललेस्सा काऊलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ । से केण?णं भन्ते! एवं वुच्चइ–'नीललेस्सा काऊलेसं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ? गोयमा ! आगारभावमायाए वा सिया, पलिभागभावमायाए वा सिया नीललेस्सा णं सा, णो खलु सा काऊलेस्सा तत्थगया. ओसका उस्सकइ वा, से एएणटणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-नीललेस्सा काऊलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ।
-पण्ण० प १७ । उ ५। सू५५ उसी प्रकार नील लेश्या कापोत लेश्या में परिणत नहीं होती है ऐसा कहा जाता है क्योंकि ( नारकी और देवों की स्थित लेश्या में ) वह केवल आकार भाव-प्रतिबिम्ब भाव मात्र से कापोतत्व को प्राप्त होती है । २०.३ कापोतलेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती। एवं काऊलेसा तेऊलेसं पप्प ।
-पण्ण० प १७ । उ ५ । सू० ५५ । पृ० ४५१ जैसा कृष्ण-नीललेश्या का कहा उसी प्रकार कापोतलेश्या मात्र आकार भाव से, प्रतिबिम्ब भाव से तेजोत्व को प्राप्त होती है अतः कापोतलेश्या तेजोलेश्या में परिणत नहीं होती है ऐसा कहा जाता है। २०.४ तेजोलेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती। ( एवं ) तेऊलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प ।
—पण्ण० प १७। उ ५ । सू ५५ । पृ० ४५१ जैसा कृष्ण-नील लेश्या का कहा उसी प्रकार तेजोलेश्या मात्र आकार भाव से, प्रतिबिम्ब भाव से पद्मत्व को प्राप्त होती है अतः तेजोलेश्या पदमलेश्या में परिणत नहीं होती है ऐसा कहा जाता है। २०.५ पद्मलेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती। ( एवं ) पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सं पप्प ।
--पण्ण० प १७ । उ ५ । सू ५५ । पृ० ४५१ जैसा कृष्ण-नीललेश्या का कहा उसी प्रकार पद्मलेश्या मात्र आकार भाव से. प्रतिबिम्ब भाव से शुक्लत्व को प्राप्त होती है अतः पद्मलेश्या शुक्ललेश्या में परिणत नहीं होती है ऐसा कहा जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org