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लेश्या - कोश
(ख) एवं पम्हलेस्सा कण्हलेस्सं नीललेस्सं काऊलेस्सं तेऊलेस्सं सुक्कलेस्सं पप्प जाव भुज्जो भुज्जो परिणमइ ? हंता गोयमा ! तं चैव ।
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- पण्ण० प १७ | उ ४ । सू ३३ । पृ० ४४६ पद्म लेश्या शुक्ल लेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उसके रूप, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श रूप परिणत होती है ।
पद्म लेश्या कृष्ण, नील, कापोत, तेजो और शुक्ल लेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उनके रूप, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श रूप परिणत होती है ।
१६.६ शुक्ललेश्या का अन्य लेश्याओं में परस्पर परिणमन
से नूणं भंते! सुक्कलेस्सा कण्हलेस्सं नीललेस्सं तेऊलेस्सं पम्हलेस्सं पप्प जाव भुज्जो २ परिणमइ ? हंता गोयमा ! तं चेव ।
- पण्ण० प १७ | उ ४ । सू ३३ | पृ० ४४६ शुक्ल लेश्या कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म लेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उनके रूप, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श रूप परिणत होती है ।
• २० लेश्याओं का परस्पर में अपरिणमन
२०.१ कृष्ण लेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होतो ।
नू भन्ते ! कहस्सा नीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताएं जाव णो ताफासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणम ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए, णो तावन्नत्ताए, णो तारसत्ताए, णो ताफासत्ताए भुज्जो २ परिणमइ । सेकेणट्टणं भन्ते ! एवं बुच्चइ ? गोयमा ! आगारभावमायाए वा से सिया, पलिभागभावमायाए वा से सिया, कण्हलेस्सा णं सा, णो खलु नीललेस्सा, तत्थ गया ओसक्कइ उस्सक्कइ वा, सेते गोयमा ! एवं वुश्च ३ - ' कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ।
उस समय वह केवल
-- पण ० प १७ । उ ५ | सू ५५ | पृ० ४५०-५१ कृष्ण लेश्या नील लेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उसके रूप, वर्ण, गंध, रस तथा स्पर्श रूप कदाचित् नहीं परिणत होती है ऐसा कहा जाता है क्योंकि आकार भाव मात्र से या प्रतिबिम्ब मात्र से नील लेश्या है । वहाँ कृष्ण लेश्या नील लेश्या. नहीं है। वहां कृष्ण लेश्या स्व स्वरूप में रहती हुई भी छायामात्र से- प्रतिविम्ब मात्र से या यानि सामान्य विशुद्धि - अविशुद्धि में उत्सर्पण - अवसर्पण करती है । यह अवस्था नारकी और देवों की स्थित लेश्या में होती है ।
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