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लेश्या-कोश २२.३ कापोतलेश्या की स्थिति ।
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तिण्णुदही पलियमसंखभागमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा काऊलेसाए ।।
-उत्त० अ ३४ । गा ३६ । पृ० १०४७ कापोतलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यामवें भाग अधिक तीन सागरोपम की होती है। २२.४ तेजोलेश्याकी स्थिति।
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोण्णुदही पलियमसंखभागमब्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेऊलेसाए ।
- उत्त० अ ३४ | गा ३७ । पृ० १०४७ तेजोलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की होती है। २२.५ पद्मलेश्या की स्थिति।
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दसउदही होइ मुहुत्तमभहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ।
–उत्त० अ ३४ । गा ३८। पृ० १०४७ पाठान्तर :-दस होंति य सागरा मुहुत्तहिया। द्वितीय चरण ।
पद्मलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागरोपम की होती है। २२.६ शुक्ललेश्या की स्थिति।
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुक्कलेसाए ।
-उत्त० अ ३४ । गा ३६ । पृ० १०४७ शुक्ललेश्या की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम की होती है। एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई (उ) वण्णिया होइ ।
-उत्त० अ ३४। गा ४० पूर्वार्ध । पृ० १०४७ इस प्रकार औधिक ( सामान्यतः) लेश्या की स्थिति कही है।
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