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लेश्या-कोश '२५ तपोलब्धि से प्राप्त तेजोलेश्या २५.१ तपोलब्धि से प्राप्त तेजोलेश्या पौद्गलिक है।
(क) तिहिं ठाणेहिं सम्मणे निग्गंथे संखितविउलतेऊलेस्से भवइ, तं जहा-- आयावणयाए, खंतिखमाए, अपाणगेणं तवो कम्मेणं ।
- ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १८२ । पृ० २१५ तीन स्थान-प्रकार से श्रमण निग्रन्थ को संक्षिप्त-विपुल तेजोलेश्या की प्राप्ति होती है, यथा-(१) आतापन (शीत तापादि सहन ) से, (२) क्षांतिक्षमा ( क्रोधनिग्रह ) से, (३) अपान-केन तपकर्म ( छह छह भक्त तपस्या) से ।
(ख) गौतम गणधर तथा अन्य अणगारों के विशेषणों में स्थान-स्थान पर 'संखितविउलतेऊलेस्से' समास विशेषण शब्द का व्यवहार हुआ है।
-भग० श १ । उ १ । प्रश्नोत्थान १ । पृ० ३८४ ( हमने यहाँ एक ही संदर्भ दिया है लेकिन अनेक स्थानों में इस समास शब्द का व्यवहार हुआ है, अर्थ और भाव सब जगह एक ही है।)
(ग) कुद्धस्स अणगारस्स तेऊलेस्सा निसट्ठा समाणी दूरं गया, दूरं निवयइ ; देसं गया, देसं निवयइ ; जहिं जहिं च पं सा निवयइ तहिं तहिं णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासेंति जाव पभासेंति ।
-भग० श ७ । उ १० । प्र ११ । पृ० ५३० क्रुधित अणगार के द्वारा निक्षिप्त तेजोलेश्या दूर या पास जहाँ जहाँ जाकर गिरती है वहाँ वहाँ वे अचित् पुद्गल द्रव्य अवभास यावत् प्रभास करते हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि तपोलब्धि प्राप्त तेजोलेश्या प्रायोगिक द्रव्यलेश्या-पौद्गलिक है। यह छभेदी लेश्या की तेजोलेश्या से भिन्न है ऐसा प्रतीत होता है। २५.२ यह तेजोलेश्या दो प्रकार की होती है, यथा-(१) सीओसिणतेऊलेस्सा, (२)
सीयलिय तेऊलेस्सा।
(१) शीतोष्ण तेजोलेश्या, (२) शीतल तेजोलेश्या। इनका उदाहरण भगवान महावीर के जीवन में मिलता है।
___तए णं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अणुकंपणट्ठयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिसस्स सीओसिणतेउलेस्सा (तेय ) पडिसाहरणट्टयाए एत्थ णं अन्तरा अहं सीयलियं तेउलेस्सं निसिरामि, जाए सा ममं सीयलियाए तेउलेस्साए वेसिया
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