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लेश्या-कोश (ख) वरवारुणीए व रसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ। महुमेरयस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं ।।
-उत्त० अ ३४ । गा १४ । पृ० १०४६ चन्द्रप्रभा, मणिशीला, श्रेष्ठसीधु, श्रेष्टवारूणी, पत्रासव, पुष्पासव, फलासव, चोयासव, आसव, मधु, मैरेय, कापिशायन, खजुरसार, द्राक्षासार, सुपक्व इक्षुरस, अष्टप्रकारीयपिष्ट, जाम्बुफल कालिका, श्रेष्ट प्रसन्ना, आसला, मासला, पेशल, इषत् ओष्ठावलंबिनी, इषत् व्यवच्छेद कटुका, इषत् ताम्राक्षिकरणी, उत्कृष्ट मद्प्रयुक्ता, उत्तम वर्ण, गंध, स्पर्शवाले, आस्वादनीय, विस्वादनीय, पीनेयोग्य, बृहणीय, पुष्टिकारक, प्रदीप्तिकारक, दर्पणीय, मदनीय, सर्व इन्द्रिय, सर्व गात्र को आनन्दकारी आस्वाद से अधिक इष्टकर, केतकर, प्रीतकर, मनोज्ञ तथा मनभावने आस्वाद वाली पद्म लेश्या होती है। मद, आसव, मधु, मेरक आदि से अनन्त गुण मधुर आस्वादन वाली होती है।
१३.६ शुक्ल लेश्या के रस
(क) सुक्कलेस्साणं भन्ते । केरिसिया आसाएणं पन्नत्ता ? गोयमा से जहानामए गुले इ वा खंडे इ वा सक्करा इ वा मच्छंडिया इ वा पप्पडमोदए इ वा भिसकंदए इ वा पुप्फुत्तरो इ वा पउमुत्तरा इ वा आदंसिय इ वा सिद्धत्थिया इ वा आगासफालितोवमा इ वा उवमा इ वा अणोवमा इवा, भवेयारवे ? गोयमा ! णो इण? सम?, सुक्कलेस्सा एतो इट्टतरिया चेव पियतरिया चेव मणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता।
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू० ४६ । पृ० ४४८८ (ख) खजूरमुद्दियरसो, खीररसो खंडसक्कररसो वा। एत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ सुक्काए नायव्वो॥
--उत्त० अ ३४ । गा १५ | पृ० १०४६ गोला, चीनी, शक्कर, मत्स्यंडिका पर्पटमोदक बीसकंद, पुष्पोत्तरा, पद्मोत्तरा, आदशिका, शिद्धार्थका, आकाशस्फटिकोपमाके उपम एवं अनुपम आस्वाद से अधिक इष्टकर, कन्तकर, प्रीतकर, मनोज्ञ, मनभावने आस्वाद वाली शुक्ल लेश्या होती है। खजूर, द्राक्ष, दूध, चीनी, शक्कर से अनन्त गुणी मधुर आस्वादवाली शुक्ल लेश्या होती है।
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