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लेश्या - कोश
(ख) जह कडुयतुंबगरसो, निंबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अनंतगुणो, रसो य किन्हाए नायव्वो ।
— उत्त० अ ३४ । गा १० । पृ० १०४६ नीम, नीमसार, नीम की छाल, नीम की क्वाथ, कुटज, कुटज फल, कुटज छाल, कुटज क्वाथ, कडुवी तुंबी, कडुवी तुम्बी का फल, क्षास्त्र पुष्पी, उसका फल, देवदाली, उसका पुष्प, मृगवालुंकी, उसका फल, घोषातकी, उसका फल, कृष्णकंद, बज्रकंद, कटुरोहिणी आदि के स्वाद से अनिष्टकर, अकंतकर अप्रीतकर, अमनोज्ञ तथा अनभावने आस्वादवाली कृष्णलेश्या होती है
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१३.२ नीललेश्या के रस
(क) नीललेस्साए पुच्छा । गोयमा ! से जहानामए भंगी इ वा भंगीरए इ वा पाढा वाचविया इ वा चित्तामूलए इ वा पिप्पली इ वा पिप्पलीमूलए इ वा पिप्पलीचुणे इ वा मिरिए इ वा मिरियचुण्णए इ वा सिंगबेरेइ वा सिंगबेरचुणे इ वा, भवेयारूवे ? गोयमा ! णो णट्ठ े समट्ठ, नीललेस्सा णं एत्तो जाव अमणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता |
- पण ० प १७ । उ ४ । सू ४२ | पृ० ४४८ (ख) जह तिगडुयस्स रसो, तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अनंतगुणो, रसो उ नीलाए नायव्वो ।
- उत्त० अ ३४ । गा ११ । पृ० १०४६
भंगी भांग, भंगीरज, पाठा, चर्व्यक, चित्रमूल, पोंपल, पोंपल मूल, पींपल चूर्ण, मरि, मरिचूर्ण, सोंठ, सोंठचूर्ण, मीर्च, गजपींपल आदि के आस्वाद से अधिक अनिष्टकर, अनंतकर, अप्रीतकर, अमनोज्ञ तथा अनभावने आस्वादवाली नीललेश्या होती है ।
१३. ३ कापोत लेश्या के रस
(क) काऊलेस्साए पुच्छा । गोयमा ! से जहानामए अंबाण वा अंबाडगाण वा माउलिंगाण वा बिल्लाण वा कविट्ठाण वा भज्जाण वा फणसाण वा दाडिमाण वा पारेवताण वा अक्खोडयाण वा चोराण वा बोराण वा विदुयाण वा अपक्काणं
वागणं वन्ने अणुववेयाणं गंधेणं अणुववेयाणं फासेणं अणुववेयाणं, भवेयारूवे ? गोयमा ! णो इट्ठे समट्ठे, जाव एत्तो अमणामतरिया चेत्र काऊलेस्सा आस्साएणं पन्नत्ता ।
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—पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४३ | पृ० ४४८
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