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लेश्या-कोश .१४ द्रव्य लेश्या के स्पर्श
कण्ह लेस्साणं भन्ते कइ x x x फासा पन्नत्ता ? गोयमा ! दव्वलेसं पडुच्च x x x अट्ठफासा पन्नत्ता एवं xxx जाव सुक्कलेस्सा।
--भग० श १२ । उ ५। प्र १६ । पृ० ६६४ द्रव्यलेश्या के आठों पौद्गलिक स्पर्श होते हैं। १४.१ प्रथम तीन लेश्या का स्पर्श (क) जह करगयस्स फासो, गोजिब्भाए व सागपत्ताणं ।
एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं । करवत, गाय की जीभ, शाक के पत्ते का जैसा स्पर्श होता है उससे भी अनन्तगुण अधिक रूक्ष स्पर्श प्रथम तीन अप्रशस्त लेश्याओं का होता है।
-उत्त० अ ३४ । गा १८ । पृ० १०४६ (ख) ( तओ ) सीयलुक्खाओ।
-ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० (ग) तओ सीयललुक्खाओ
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४७ । पृ० ४४६ प्रथम तीन लेश्या शीत-रूक्ष की स्पर्शवाली होती है ।
१४.२ पश्चात् की तीन लेश्या का स्पर्श (क) जह बूरस्स फासो नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं । एत्तो वि अणंतगुणो, पसत्थ लेसाण तिण्हं पि ।
- उत्त० अ ३४ । गा १६ । पृ० १०४६ बूर वनस्पति, नवनीत ( मक्खन) और सिरीष के फूल का जैसा स्पर्श होता है उससे भी अनन्त गुण कोमल ( स्निग्ध ) स्पर्श तीन प्रशस्त लेश्याओं का होता है । (ख) ( तओ) निधुण्हाओ।
-ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० (ग) तओ निद्धण्हाओ।
-पपण० प १७ । उ ४ । सू ४७ । पृ० ४४६ पश्चात् की तीन लेश्याओं का स्पर्श उष्ण-स्निग्ध होता है।
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