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लेश्या-कोश
___३१ १८ द्रव्यलेश्या और गुरुलघुत्व _____ कण्हलेसा णं भंते ! किं गुरूया, जाव अगुरूयलहुया ? गोयमा ! नो गुरुया नो लहुया, गुरुयलहुया वि, अगुरूयलहुया वि। से केण?णं ? गोयमा ! दव्वलेस्सं पडुच्च ततियपएणं, भावलेस्सं पडुच्च चउत्थपएणं एवं जाव सुक्कलेस्सा।
-भग० श १ । उ ६ । प्र २८६६° पृ० ४११ कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या द्रव्यलेश्या की अपेक्षा गुरुलघु है सथा भावलेश्या की अपेक्षा अगुरुलघु है।
१६ द्रव्यलेश्याओं की परस्पर परिणमन-गति
से किं तं लेस्सागइ १ २ जण्णं कण्हलेस्सा नीललेम्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ एवं नीललेसा काऊलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए परिणमइ, एवं काऊलेस्सावि तेऊलेस्सं, तेऊलेस्सावि पम्हलेस्सं, पम्हलेस्सावि सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव परिणमइ, से तं लेस्सागइ।
-पण्ण० प १६ । उ ४ । सू १५ । पृ ४३३ एक लेश्या दूसरी लेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उस रूप, वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श रूप में परिणत होती है वह उसकी लेश्यागति कहलाती है।।
लेश्यागति विहायगइ का ११ वाँ भेद है। -पण्ण० प १६। सू १४ । पृ० ४३२-३ १६.१ कृष्णलेश्या का अन्य लेश्याओं में परिणमन
(क) से नूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो २ परिणमइ ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ। से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ'कण्हलेस्सा नीललेसं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ' ? गोयमा ! से जहानामए खीरे दूसिं पप्प सुद्धे वा वत्थे रागं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए भुज्जो २ परिणमइ, से तेण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ- 'कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ।
--पपण० प १७ । उ ४ । सू० ३१ । पृ० ४४५ -भग० श ४ । उ १० । प्र० १। पृ० ४६८
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