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लेश्या-कोश खेरसार, करीरसार, धमासार, ताम्र, ताम्रकरोटक, ताम्र की कटोरी, बेंगनी पुष्प, कोकिलच्छद ( तेल कंटक ) पुष्प, जवासा कुसुम, अलसी के फूल, कोयल के पंख, कजुतर की ग्रीवा आदि के वर्ण के कापोतीत्व से अधिक अनिष्टकर, अकंतकर, अप्रीतकर, अमनोज्ञ तथा अनभावने कापोत वर्ण वाली कापोत लेश्या होती है।
कापोत लेश्या पंचवर्ण में काल-लोहित वर्णवाली होती है।
११.४ तेजोलेश्या के वर्ण।
(क) तेऊलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वन्नेणं पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहानामए ससरुहिरए इ वा उरभरुहिरे इ वा वराहरुहिरे इ वा संबररुहिरे इ वा मणुस्सरुहिरे इ वा इंदगोपे इ वा बालेंदगोपे इ वा बालदिवायरे इ वा संझारागे इ वा गुंजद्धरागे इ वा जाइहिंगुले इ वा पवालंकुरे इ वा लक्खारसे इ वा लोहिअक्खमणी इ वा किमिरागकंबले इ वा गयतालुए इ वा चिणपिट्ठरासी इ वा पारिजायकुसुमे इ वा जासुमणकुसुमे इ वा किंसुयपुफ्फरासी इ वा रत्तुप्पले इ वा रत्तासोगे इ वा रत्तकणवीरए इ वा रत्तबंधुयजीवए इवा, भवेयारूवे ? गोयमा! णो इण? सम?। तेऊलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वन्नेणं पन्नत्ता ।
-पण्ण० प १७। उ४। सू ३७ । पृ० ४४७ (ख) हिंगुलधाउसंकासा, तरुणाइच्चसंनिभा। सुयतुंडपईवनिभा, तेऊलेसा उ वण्णओ।।
-उत्त० अ ३४ । गा ७ पृ० १०४६ (ग) तेऊलेस्सा लोहिएणं वन्नेणं साहिज्जइ ।
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४० । पृ० ४४७ शशक का रुधिर, मेष का रुधिर, बराह का रुधिर, सांवर का रुधिर, मनुष्य का रुधिर, इन्द्रगोप, नवीन इन्द्रगोप, बालसूर्य या संध्या का रंग, जाति हिंगुल, प्रबालांकुर, लाक्षारस, लोहिताक्षमणि, किरमिची रंग की कम्बल, गज का तालु, दाल की पिष्ट राशि, पारिजात कुसुम, जपाके सुमन, केसु पुष्पराशि, रक्तोत्पल, रक्ताशोक, रक्त कनेर, रक्तबन्धुजीव, तोते की चोंच, दीपशिखा आदि के रक्त वर्ण से अधिक इष्टकर, कंतकर, प्रीतकर, मनोज्ञ तथा मनभावने लाल वर्णवाली तेजो लेश्या होती है ।
पंचवर्ण में तेजोलेश्या रक्त वर्ण की होती है।
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