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કવિકુલકિરીટ
आप सर्व सज्जनोंके समक्ष यह प्रतिक्षा करता हूं कि जो जो बातें शासनकी उन्नतिके विषयमें फरमाई है उन बातोको यथाशक्ति पालन करनेके लिये जीवनपर्यंत तत्पर रहुंगा ।
આટલું મેલી રહ્યા પછી મુનિરાજ શ્રીમદ્ માનવિજયજીએ પણ યોગ્ય શબ્દમાં અનુમાન આપ્યુ` હતુ` તે પછી શ્રીમાન લબ્ધિવિજયજી મહારાજે સભાને અપેક્ષીને નીચે મુજબ વક્તવ્ય જાહેર કર્યું હતુ. प्रिय सज्जनो !
मुझको आज मानपत्र देनेकेलीए आप लोगोने एक विराट सभा भरी है। जिसके अन्दर बहारके उत्साही नर तथा नगर निवासी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्रीसंघ और दीगंबर जैन समाज व जैनेतर सभी समाजके मनुष्य प्रायः विद्यमान हैं ।
सभा प्रत्येक मनुष्यमें असीम उत्साह प्रकाशमान् हो रहा है. शा. हेमचंदभाइ छगनलालने तथा अन्य सद्गृहस्थोने मेरे विषय में जिन शब्दोसे स्तुति को है तथा मानपत्र में मेरे लिए जो शब्द लीखे गये है मे अपने आपको उन बातोके योग्य नहीं देखता हुं परन्तु जिस संघरुप तीर्थको श्री तीर्थकर देव भी देशनाके समय 'नमो तित्थस्स' कहकर नमस्कार करते थे वह तीर्थरूप श्री संघ मानपत्र में मिथ्या प्रशंसा भी नहींकर सुक्ता । दीर्घ विचार करनेसे मालूम होता है कि शायद मानपत्र में लिखे हुए गुणका मेरेमें अंश होगा और आप लेखक तथा अनुमोदक शुद्ध गुण श्रद्धालु और सदाचारी होनेसे अत्यन्त शुद्ध बुद्धिके धारक होंगे इस शुद्ध बुद्धिने आप लोगोके लीप उच्च जातिके सूक्ष्मदर्शक । दुर्विन्द ) का काम दीया मालूम होता है अर्थात् मेरे परमाणु मात्र गुणों को आपकी बुद्धिने पर्वत तुल्य देखा और झट जैन समाज में जाहिर कराया कि अमुक व्यक्ति अमुक गुणको रखती है