________________
२०
अष्टावक्र-गीता भा० टी० स० है, अतएव आत्मा से भिन्न सब मिथ्या है, क्योंकि कहा गया है
ब्रह्मभिन्नम्, सर्व मिथ्या, ब्रह्मभिन्नत्वात् । ब्रह्म से भिन्न सारा जगत् ब्रह्म से पृथक् होने के कारण शक्ति में रजत की तरह मिथ्या है, इस अनुमान-प्रमाण से जगत् का मिथ्यात्व सिद्ध होता है। और इसी से आत्मा में विजातीय-भेद भी नहीं है। आत्मा निश्चय है, इस वास्ते उसमें स्व-गत भेद भी नहीं है क्योंकि स्व-गत भेद सावयव पदार्थों में होता है। आत्मा देश, काल और वस्तु के परिच्छेद से रहित है, क्योंकि देश, काल और वस्तु का परिच्छेद परिच्छिन्न पदार्थ में ही रहता है, व्यापक में नहीं रहता है।
जो वस्तु किसी काल में हो और किसी काल में न हो, वह वस्तु काल-परिच्छेदवाली कहलाती है, ऐसे घटपटादिक पदार्थ ही हैं, आत्मा तो तीनों कालों में एक-सा ज्यों का त्यों बना रहता है, इस वास्ते काल-परिच्छेद से आत्मा रहित है।
जो वस्तु एक देश में हो और दूसरे देश में न हो, वह देश-परिच्छेदवाली कहलाती है, ऐसे घटपटादिक पदार्थ ही हैं, आत्मा तो सब देश में है, इस वास्ते वह देश परिच्छेद से भी रहित है।
जो एक वस्तु दूसरी वस्तु में न रहे, वह वस्तु परिच्छेद कहलाता है, जैसे घट, पट में नहीं रहता है और पट, घट में नहीं रहता है, परन्तु आत्मा सब वस्तुओं में ज्यों का त्यों एक-रस रहता है, इस वास्ते वह वस्तु परिच्छेद से भी रहित है।