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451 573. Pravrajya (ascetic initiation) is of four kinds-(1) Avapaat
pravrajya-initiation for the purpose of serving the teacher and others. (2) Akhyat pravrajya-initiation at the behest of or inspiration by others. (3) Sangar pravrajya-Initiation to honour commitment or direction such as 'If you get initiated I will also follow suit.' (4) Vihagagati pravrajyainitiation taken alone after going away from the country.
५७४. चउबिहा पवज्जा पण्णत्ता, तं जहा-तुयावइत्ता, पुयावइत्ता, बुआवइत्ता, परिपुयावइत्ता। म ५७४. प्रव्रज्या चार प्रकार की कही है-(१) तोदयित्वा-रोग आदि उत्पन्न करने का भय बताकर
या कष्ट देकर दी जाने वाली दीक्षा. (२) प्लावयित्वा-जन्मस्थान से अन्यत्र ले जाकर दी जाने वाली दीक्षा, ऊ (३) वाचयित्वा-बातचीत करके अथवा मोचयित्वा-पाठान्तर मानने पर किसी को ऋण मुक्त कराकर दी + जाने वाली दीक्षा, और (४) परिप्लुतयित्वा-स्निग्ध, मिष्ट आहार का प्रलोभन देकर दी जाने वाली दीक्षा। ॐ (संस्कृत टीका भागा २ पृष्ठ ४७४ में इनके उदाहरण भी दिये हैं)
574. Pravrajya (ascetic initiation) is of four kinds—(1) Todayitvainitiation enforced by coercion such as fear of causing some ailment.
(2) Plavayitva-initiation given by taking one away from his birth + place. (3) Vachayitva-initiation given after convincing. (another + reading: mochayitva-initiation given after clearing one's debts.
(4) Pariplutayitva- initiation given by promising rich and tasty food as i enticement. (Examples of all these are given in Sanskrit Tika, part-2 p. 474)
५७५. चउब्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा-णडखइया, भडखइया, सोहखइया, सियालखइया।
५७५. प्रव्रज्या चार प्रकार की कही है-(१) नटखादिता-संवेग-वैराग्य से रहित नट की तरह मात्र ॐ मनोरंजन के लिए धर्मकथा कहकर भोजनादि के उद्देश्य से ली गई। (२) भटखादिता-सुभट के समान ॐ बल-प्रदर्शन कर या सेवा करके, विद्याबल दिखाकर जीवन निर्वाह के लिए ली गई, (३) सिंहखादिता-सिंह
के समान दूसरों को शाप आदि से भयभीत कर जीवन निर्वाह कराने वाली और (४) शृगालखादिता+ सियाल के समान दीन-वृत्ति से लोगों की खुशामद कर जीवन निर्वाह कराने वाली।
575. Pravrajya (ascetic initiation) is of four kinds—(1) Natakhadita4 acrobat-like; taken for entertainment and not out of detachment.
(2) Bhatakhadita-warrior-like; for earning livelihood by display of learning and extending services. (3) Simhakhadita-lion-like; taken for earning livelihood by terrorizing others with threat of casting evil spell etc. (4) Shrigalakhadita-jackal-like; taken for earning livelihood by invoking pity through flattery.
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| स्थानांगसूत्र (२)
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