Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 539
________________ फ्र फफफफफफ 卐 16. Shraman Dharma (religion of Jain ascetic) is of ten kinds-5 (1) kshanti (forgiveness), (2) mukti (contentment or absence of greed ), 5 ( 3 ) arjava ( honesty or purity of mind) (4) maardava (modesty or 卐 gentleness), (5) laghava (humbleness), (6) satya (truth), (7) samyam 卐 (ascetic-discipline), (8) tap (austerities), (9) tyag (detachment; offer food and other things to colleague ascetics), and (10) brahmacharya vaas (to live with gurus and practice celibacy). 卐 १७. वैयावृत्त्य (सेवा-शुश्रूषा) दस प्रकार की है। जैसे - ( १ ) आचार्य का वैयावृत्त्य, (२) उपाध्याय का वैयावृत्त्य, (३) स्थविर का वैयावृत्त्य, ( ४ ) तपस्वी का वैयावृत्त्य, (५) ग्लान का वैयावृत्त्य, (६) शैक्ष का वैयावृत्त्य, (७) कुल का वैयावृत्त्य, (८) गण का वैयावृत्त्य, (९) संघ का वैयावृत्त्य, (१०) साधर्मिक का वैयावृत्त्य । ( विस्तार के लिए देखें ठाणं पृष्ठ ९६२) 17. Vaiyavritya ( service) is of ten kinds – ( 1 ) acharya vaiyavritya (service of acharya ), ( 2 ) upadhyaya vaiyavritya (service of upadhyaya), 5 (3) sthavir vaiyavritya (service of senior ascetics), (4) tapasvi vaiyavritya (service of ascetics observing austerities), (5) glaan vaiyavritya (service of ailing ascetics), (6) shaiksha vaiyavritya (service of neo-initiates), (7) kula vaiyavritya (service of disciples of one acharya), (8) gana 5 vaiyavritya (service of group of many kulas ), ( 9 ) sangha vaiyavritya 5 ( service of group of many ganas) and (10) sadharmik vaiyavritya (service th of ascetics following the same praxis). (for details see Thanam p. 962) वैयावृत्त्य - पद VAIYAVRITYA-PAD (SEGMENT OF SERVICE) १७. दसविधे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा - आयरियवेयावच्चे, उवज्झायवेयावच्चे, थेरवेयावच्चे, 卐 तवस्सिवेयावच्चे, गिलाणवेयावच्चे, सेहवेयावच्चे, कुलवेयावच्चे, गणवेयावच्चे, संघवेयावच्चे, साहम्मियवेयावच्चे। परिणाम - पद PARINAAM-PAD (SEGMENT OF MANIFESTATION) १८. दसविधे जीवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा - गतिपरिणामे, इंदियपरिणामे, कसायपरिणामे, लेसापरिणामे, जोगपरिणामे, उवओगपरिणामे, णाणपरिणामे, दंसणपरिणामे, चरित्तपरिणामे, वेयपरिणामे । १८. जीव का परिणाम दस प्रकार का है - ( १ ) गति - परिणाम-नरक आदि गतियों की प्राप्ति, (२) इन्द्रिय- परिणाम - पाँच इन्द्रियों की प्राप्ति, (३) कषाय- परिणाम - कषायों की परिणति, (४) लेश्या - परिणाम - लेश्याओं का स्पर्श करना, (५) योग - परिणाम - मन आदि तीनों योगों का व्यापार, (६) उपयोग - परिणाम - दोनों प्रकार के उपयोग, (७) ज्ञान - परिणाम - पाँच ज्ञान, (८) दर्शन - परिणाम - तीनों दर्शन, (९) चारित्र - परिणाम - पाँच चारित्र, (१०) वेद - परिणाम - तीनों वेद । दशम स्थान Jain Education International (477) For Private & Personal Use Only फफफफफफफफफफफफफ Tenth Sthaan 卐 फफ 卐 卐 卐 卐 www.jainelibrary.org

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