Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 634
________________ ))))))495555453 ))))) (5) Purvabhadrapad, (6) Purvaphalguni, (7) Mool, (8) Aashlesha, (9) Hast 4 and (10) Chitra. म . विवेचन-ज्ञान वृद्धि के दस नक्षत्रों का तात्पर्य यह है कि इन दस नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र से यदि चन्द्र का योग लगा हो तो उस समय अध्ययन प्रारम्भ करने से वह ज्ञान वृद्धि में सहायक म होता है। Elaboration - The ten knowledge enhancing constellations means that 4 if studies are commenced when any of these constellations is in conjunction with the moon it helps enhancing knowledge. ॐ कुलकोटि-पद KULAKOTI-PAD (SEGMENT OF SPECIES) १७१. चउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुहसतसहस्सा पण्णत्ता। १७२. उरपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुहसतसहस्सा पण्णत्ता। १७१. पंचेन्द्रिय, तिर्यग्योनिक, स्थलचर चतुष्पद की जाति-कुल-कोटियाँ दस लाख हैं। १७२. पंचेन्द्रिय, तिर्यग्योनिक स्थलचर उरःपरिसर्प की जाति-कुल-कोटियाँ दस लाख हैं। 171. Panchendriya tiryagyonik sthalchar chatushpad (five-sensed terrestrial quadruped animals) have ten lac (hundred thousand) species (jati kulakoti) in their genuses (yoni pramukh). 172. Panchendriya tiryagyonik sthalchar uraparisarp (five-sensed terrestrial non-limbed reptilian animals) have ten lac (hundred thousand) species (jati kulakoti) in their genuses (yoni pramukh). पापकर्म-पद PAAP-KARMA-PAD (SEGMENT OF DEMERITORIOUS KARMA) १७३. जीवा णं दसटाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा-पढमसमयएगिदियणिव्वत्तिए, (अपढमसमयएगिदियणिव्वत्तिए, पढमसमयबेइंदियणिवत्तिए, अपढमसमयबेइंदियणिबत्तिए, पढमसमयतेइंदियणिव्वत्तिए, अपढमसमयतेइंदियणिव्वत्तिए, पढमसमयचउरिंदियणिवत्तिए, अपढमसमयचउरिंदियणिव्यत्तिए, पढमसमयपंचिंदियणिबत्तिए, अपढमसमय) पंचिंदियणिव्वत्तिए। एवं-चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव। १७३. जीवों ने दस स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्म के रूप में संचय किया है, करते हैं ॐ और करेंगे। जैसे-(१) प्रथम समय-एकेन्द्रिय निर्वर्तित पुद्गलों का। (२) अप्रथम समय-एकेन्द्रिय ))))))) 卐)))))))))))) स्थानांगसूत्र (२) (564) Sthaananga Sutra (2) 85)))))))) ))) 55555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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