Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 554
________________ நிகழ்தகவி*************************தமிழிதில் 5555555555555555 फ्र फ फ्र 卐 Asurendra, the king of Asur Kumar gods is ten hundred (1000) Yojans high, ten hundred (1000) Kosa deep in the ground, and ten hundred 5 (1000) Yojan wide at its base. 49. Yamaprabh, the Utpat parvat of Yama, 5 the lok-paal of Chamar Asurendra, the king of Asur Kumar gods is as high, deep and wide as the Utpataparvat of Soma. The same should be read for-50. Varunaprabh, the Utpat parvat of Lok-pal Varun and 51. Vaishramanaprabh, the Utpat parvat of Lok-pal Vaishramana. 卐 ५२. बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो रुयगिंदे उप्पातपव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते । ५३. बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स एवं चेव, जधा चमरस्स लोकपालाणं तं चेव बलिस्सवि । ५२. वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि का रुचकेन्द्र नामक उत्पातपर्वत मूल में दस सौ बाईस (१०२२) योजन विस्तृत है । ५३. वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के लोकपाल महाराज सोम, यम, वैश्रमण और वरुण के स्व-स्व नाम वाले उत्पातपर्वतों की ऊँचाई एक-एक हजार योजन, गहराई एक-एक हजार 5 गव्यूति और मूल भाग का विस्तार एक-एक हजार योजन है। फ्र 卐 卐 52. Ruchakendra, the Utpat parvat of Bali Vairochanendra, the king of फ्र Vairochan gods, is ten hundred twenty two (1022) Yojan wide at its base. 53. Each of the Utpat parvats of Soma, Yama, Vaishraman and Varun, the lok-paals of Bali Vairochanendra, the king of Vairochan gods, bearing each one's name respectively, is one thousand Yojans high, one thousand Kosa deep in the ground, and one thousand Yojan wide at their bases. ५४. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो धरणप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसयाई उडुं उच्चत्तेणं, दस गाउयसताइं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसताई विक्खंभेणं । ५५. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररणो कालवालस्स महारण्णो कालवालप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसयाई उडुं उच्चत्तेणं एवं चेव । ५६. एवं जाव संखवालस्स । ५७ एवं भूताणंदस्सवि । ५८. एवं लोगपालाणवि से, जहा धरणस्स । ५९. एवं जाव थणितकुमाराणं सलोगपालाणं भाणियव्वं, सव्वेसिं उप्पायपव्वया भाणियव्वा सरिसणामगा । ६०. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो सक्कप्प उप्पातपव्वते दस जोयणसहस्साई उड्डुं उच्चत्तेणं, दस गाउयसहस्साइं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ते । ६१. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो । जधा सक्करस तथा सव्वेसिं लोगपालाणं, सव्वेसिं च इंदाणं जाव अच्चुयत्ति । सव्वेसिं पमाणमेगं । ५४. नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण का धरणप्रभ नामक उत्पातपर्वत दस सौ (१०००) योजन ऊँचा, दस सौ गव्यूति गहरा और मूल में दस सौ (१०००) योजन विस्तार वाला है । ५५. नागकुमारेन्द्र 25 55 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5955555 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 52 नागकुमारराज के लोकपाल कालपाल महाराज का कालपालप्रभ नामक उत्पातपर्वत दस सौ योजन स्थानांगसूत्र (२) (492) Jain Education International Sthaananga Sutra (2) फ्र फ्र குததததததததத*********தமிழ************* For Private & Personal Use Only 卐 卐 卐 www.jainelibrary.org

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