Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 586
________________ सामाचारी-पद SAMACHARI-PAD (SEGMENT OF ASCETIC-BEHAVIOUR) १०२. दसविहा सामायारी पण्णत्ता, तं जहा इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया य णिसीहिया। आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य णिमंतणा॥ उवसंपया य काले, सामायारी दसवि हा उ॥१॥ (संग्रह-श्लोक) १०२. सामाचारी दस प्रकार की है, जैसे-(१) इच्छा-सामाचारी-कार्य करने या कराने में ! इच्छाकार (आपकी इच्छा हो तो) का प्रयोग। (२) मिच्छा-समाचारी-भूल हो जाने पर मेरा दुष्कृत मिथ्या हो मिच्छामि दुक्कडं बोलना। (३) तथाकार-समाचारी-आचार्य के वचन को 'तह' त्ति कहकर स्वीकार 卐 करना। (४) आवश्यक-समाचारी-उपाश्रय से बाहर जाते समय आवस्सही ‘आवश्यक कार्य के लिए जाता हूँ', ऐसा बोलकर जाना। (५) नैषेधिकी-समाचारी-कार्य से निवृत्त होकर के आने पर 'निसही' ॐ 'मैं निवृत्त होकर आया हूँ' ऐसा बोलकर उपाश्रय में प्रवेश करना। (६) आपृच्छा-समाचारी-किसी कार्य 卐 के लिए आचार्य से पूछकर जाना। (७) प्रतिपृच्छा-समाचारी-दूसरों का काम करने के लिए आचार्य र आदि से पूछना। (८) छन्दना-समाचारी-आहार करने के लिए साधर्मिक साधुओं को बुलाना। 卐 (९) निमंत्रणा-समाचारी-'मैं आपके लिए आहारादि लाऊँ' इस प्रकार गुरुजनादि को निमंत्रित करना। (१०) उपसंपदा-समाचारी-ज्ञान, दर्शन और चारित्र की विशेष प्राप्ति के लिए कुछ समय तक दूसरे आचार्य के पास जाकर उनके समीप रहना। (विशेष वर्णन अनयोगद्वारसत्र भाग तथा 卐 अ. २६ देखना चाहिए)। - 102. Samachari (ascetic-behaviour) is of ten kinds—(1) Icchasamachari—to seek permission for doing or getting done some work stating-If you desire so. (2) Mithya-samachari--to utter michchhami y dukkadam (may my misdeed be undone) with a feeling of repentance for any misdeed committed. (3) Tatha-samachari-to assent the order or word of the preceptor by uttering tahat'. (4) Avashyaki-to utter avassahi (I am going for some necessary work. ) in order to inform the y guru when going out for any necessary work. (5) Naishedhiki- 4 samachari—to utter nisahi (I am relieved of the work. ) in order to announce on return after doing some work and before entering the upashraya. (6) Apricchaa-samachari-to seek permission of the guru before doing any work. (7) Pratiprichhaa-samachari-to seek permission for doing some other person's work. (8) Chhandana-samachari-to offer acquired things including food to other ascetics of the group. (9) Nimantrana-samachari-to invite other ascetics of the group to partake in things to be acquired in future saying--May I bring this for 4 you. (10) Upasampad-samachari—to go and stay with some other senior 5 19555555555558 स्थानांगसूत्र (२) (522) Sthaananga Sutra (2) 55555555 555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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