Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 618
________________ 95555555555555555555555555555555555551 योजन है। भूमितल से दस योजन की ऊँचाई पर उसके उत्तरी और दक्षिणी भाग पर विद्याधरों की ॐ श्रेणियाँ (नगर) हैं। उनमें विद्याधर रहते हैं, जो कि विद्याओं के बल से आकाश में गमनादि करने में 卐 समर्थ होते हैं। वे श्रेणियाँ दोनों ओर दस-दस योजन चौड़ी हैं। इन विद्याधर-श्रेणियों से भी दस योजन + की ऊँचाई पर दोनों ओर आभियोगिक देवों की श्रेणियाँ हैं, जिनमें अभियोग जाति के व्यन्तर देव रहते ॐ हैं। ये देव शक्रेन्द्र आदि इन्द्रों व उनके लोकपालों की आज्ञा का पालन करते हैं। (विशेष वर्णन जम्बूद्वीप । 卐 प्रज्ञप्ति में) Elaboration-At the center of Bharat as well as Airavat areas there is 41 a Vaitadhya mountain fifty Yojan wide at the base stretching from east 41 Lavan Samudra to west Lavan Samudra. Its height is twenty five $ Yojans. Ten Yojans above from the ground level there are Vidyadhar ranges (group of abodes) on its north and south faces. Vidyadhars (gods 5. with special powers) capable of flying and performing other such y activities live here. These ranges are ten Yojan long on both sides. Ten 卐 Yojans higher than these ranges are ranges of Aabhiyogik gods (a kind of ir gods). These gods are under the command of Shakra and other Indras and their lok-paals. (more details in Jambudveep Prajnapti) ग्रैवेयक-पद GRAIVEYAR-PAD (SEGMENT OF GRAIVEYAK) १५८. गेविज्जगविमाणा णं दस जोयणसयाई उठं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। १५८. (नव) ग्रैवेयक विमानों के जितने भी विमान हैं, उनकी ऊँचाई दस सौ (१०००) योजन है। __158. All the vimaans in the sector of Graiveyak vimaans are ten hundred (1000) Yojan in height. तेजसा-भस्मकरण-पद TEJASA-BHASMAKARAN-PAD (SEGMENT OF BURNING BY FIRE-POWER) - १५९. दसहि ठाणेहिं सह तेयसा भासं कुज्जा, तं जहा (१) केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते समाणे परिकुविते तस्स तेयं णिसिरेज्जा। से तं परितावेति, से तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा।। (२) केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेजा, से य अच्चासातिते समाणे देवे परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा। से तं परितावेति, से तं परितावेत्ता, तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। (३) केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते समाणे परिकुविते देवेवि य परिकुविते ते दुहओ पडिण्णा तस्स तेयं णिसिरेज्जा। ते तं परिताति, ते तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। स्थानांगसूत्र (२) (554) Sthaananga Sutra (2) 牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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