Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 623
________________ B555555555555555) ))) ) ))) )))) )) ) 步步步步步步步步步5日 555555555555555555555555559555555555555 म तेजोलब्धि मारक भी होती है और उपकारक भी। मारक तेजोलब्धि जलाकर भस्म कर सकती है म उसकी क्षमता कम से कम एक व्यक्ति को तथा अधिक से अधिक सोलह जनपदों (देशों) को जलाकर भस्म कराने की है। उपकारक तेजोलब्धि का प्रयोग शान्त, हर्षोल्लषित व करुणापूरित चित्त से किया 卐 जाता है। (हिन्दी टीका, भाग २, पृष्ठ ८६२) Elaboration-the commentator (Vritti) has laid special emphasis on three terms used in the aforesaid aphorism. Shraman-this word signifies a disciplined ascetic life with emphasis on austerities. MahanHi this word signifies a detached life with emphasis on ahimsa and fi compassion. Tejolabdhi-This is a fire-power acquired through practice of special austerities. It can burn and reduce others to ashes. This power can be acquired both by the righteous as well as the unrighteous. Here tatharupa Shraman-mahan indicates a righteous aspirant. Tejolabdhi is destructive as well as constructive. The destructive tejolabdhi can burn and reduce anything to ashes. Its capacity ranges from a single person to sixteen states. The constructive tejolabdhi is employed by serene, joyful and compassionate mind. (Hindi Tika, part-2, 3 p. 862) आश्चर्यक-पद ASHCHARYAK-PAD (SEGMENT OF THE MIRACULOUS) १६०. दस अच्छेरगा पण्णत्ता, तं जहा उवसग्ग गन्भहरणं, इत्थीतित्थं अभाविया परिसा। कण्हस्स अवरकंका, उत्तरणं चंदसूराणं॥१॥ हरिवंसकुलुप्पत्ती, चमरुप्पातो य अट्ठसयसिद्धा। अस्संजतेसु पूआ, दसवि अणंतेण कालेणं॥२॥ १६०. दस आश्चर्य कहे हैं, जैसे-(१) उपसर्ग-तीर्थंकरों के ऊपर उपसर्ग होना। जैसे भगवान महावीर को शूलपाणि, संगम के मारणांतिक उपसर्ग हुए। केवलज्ञान होने के पश्चात् गोशालक द्वारा तेजोलब्धि का प्रयोग हुआ। (२) गर्भहरण-भगवान महावीर का गर्भापहरण होना। (३) स्त्री का तीर्थकर 卐 होना। जैसे १९वें तीर्थंकर भगवती मल्ली। (४) अभावित परिषत्-तीर्थंकर भगवान महावीर का प्रथम धर्मोपदेश, वैशाख शुक्ला दसमी के दिन विफल हुआ अर्थात् उसे सुनकर किसी भी श्रोता ने चारित्र ॐ अंगीकार नहीं किया क्योंकि उसमें श्रोता देव परिषद् थी।। (५) कृष्ण का द्रौपदी को पद्मनाभ राजा के म चंगुल से छुड़ाने के लिए अमरकंका का नगरी (धातकीषण्ड) में जाना। यह क्षेत्र कपिल वासुदेव की , अधीनता का था। (६) चन्द्र और सूर्य देवों का कौशाम्बी में विमान-सहित अपने मूल शरीर के साथ ॐ भगवान महावीर के दर्शन करने आना। पृथ्वी पर उतरना। (७) हरिवंश कुल की उत्पत्ति। जैसे-हरिवर्ष । क्षेत्र में जन्मे युगलिक को देव उठाकर भरतक्षेत्र की चम्पानगरी में ले आया। वहाँ वह राजा बने। उनसे 8555555)))))))))))))))))))))))))))))))))))) दशम स्थान (559) Tenth Sthaan 8 45454 ) )))))) )))555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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